tag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post5335392207148019990..comments2024-03-28T21:04:40.074+05:30Comments on उच्चारण: ग़ज़ल "दो जून की रोटी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'http://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-26540137383747533472018-06-02T18:13:37.993+05:302018-06-02T18:13:37.993+05:30सच में मजदूर की तो आफत ही है इस देश में ...
लजवाब ...सच में मजदूर की तो आफत ही है इस देश में ...<br />लजवाब शेरों से सजी ग़ज़ल ... कमाल के शेर सभी ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-45433817518953661742018-06-02T15:37:46.693+05:302018-06-02T15:37:46.693+05:30हुनर को देखता ही कौन है, दौलत की दुनिया में
हमेशा ...हुनर को देखता ही कौन है, दौलत की दुनिया में<br />हमेशा ‘रूप’ को मिलती, जहाँ दो जून की रोटी<br />बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, शास्त्री जी।Jyoti Dehliwalhttps://www.blogger.com/profile/07529225013258741331noreply@blogger.com