tag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post5899284136752476191..comments2024-03-28T21:04:40.074+05:30Comments on उच्चारण: "दोहे-होली की सौगात" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'http://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-91667915489558311162014-03-12T20:40:00.756+05:302014-03-12T20:40:00.756+05:30बहुत बढ़िया होली की धूम मचाती रंगमय सार्थक प्रस्तुत...बहुत बढ़िया होली की धूम मचाती रंगमय सार्थक प्रस्तुति।कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-66265987479519921392014-03-12T11:53:05.950+05:302014-03-12T11:53:05.950+05:30बढ़िया है ये उपहार।बढ़िया है ये उपहार।भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-69834407847556989792014-03-11T23:13:01.798+05:302014-03-11T23:13:01.798+05:30बहुत कोमल रचनातमक जनरंजन कल्याण का भाव लिए हैं सभी...बहुत कोमल रचनातमक जनरंजन कल्याण का भाव लिए हैं सभी दोहा छंद <br /><br />आपकी टिप्पणियाँ हमारी उत्प्रेरक धरोहर बनती हैं। virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-89843342967746068152014-03-11T21:47:26.450+05:302014-03-11T21:47:26.450+05:30मनभावन दोहे
हर रंग को अपने में समेटे बढ़ियाँ सीख द...मनभावन दोहे <br />हर रंग को अपने में समेटे बढ़ियाँ सीख देती हुयी। <br />बहुत लाज़वाब Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06050233256281686905noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-47038492465493197082014-03-11T19:29:17.120+05:302014-03-11T19:29:17.120+05:30होली का आनन्द मनोहर।होली का आनन्द मनोहर।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-39341276977205885692014-03-11T15:56:13.435+05:302014-03-11T15:56:13.435+05:30पकी खेती देखि के, गरब किया किसान ।
अजहूँ झोला बहु...पकी खेती देखि के, गरब किया किसान । <br />अजहूँ झोला बहुंत है, घर आवै तब जान ।| <br />----- || संत कबीर दास ॥ -----<br /><br />भावार्थ : -- अपनी तैयार उपज को देखकर किसान फूला नहीं समा रहा । अभी तो बहुंत से बिघन है, बाधाएं हैं, अड़चने हैं झमेले हैं, बिघनहारी ने भी हार त्याग दिया है जब उपज निर्विध्न स्वरुप में घर आ जाए तब जानना || Neetu Singhalhttps://www.blogger.com/profile/14843330374912315760noreply@blogger.com