tag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post7310195399507577210..comments2024-03-28T21:04:40.074+05:30Comments on उच्चारण: दोहे "कठिन झेलना शीत" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'http://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-87313138521013985082018-12-14T20:51:57.136+05:302018-12-14T20:51:57.136+05:30सूखा पाला पड़ रहा, फसल रही है सूख।
लगती अधिक गरीब ...सूखा पाला पड़ रहा, फसल रही है सूख।<br />लगती अधिक गरीब को, कंगाली में भूख।।<br />--<br />नीयत चाहे नेक हो, नियमन में है खोट।<br />लगते लोग कतार में, पाने को कुछ नोट।।<br />सरदी पड़ती ग़ज़ब की, गया दिवाकर हार।<br />मैदानी भूभाग में, कुहरे की है मार।।<br />--<br />लकड़ी-ईंधन का हुआ, अब तो बड़ा अभाव।<br />बदन सेंकने के लिए, कैसे जले अलाव।।<br />--सटीक शब्द चित्र हमारे वक्त की चुभन का पारिस्थितिकी पर्यावरण का :<br />हार मान बैठा नहीं जनमानस भगवान् ,<br />हार जीत में सम रहे वह सच में बलवान। <br />vaahgurujio.blogspot.com<br />veerujan.blogspot.com<br />veeruji05.blogspot.com<br />vigyanpaksh.blogspot.comAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/04532342283593466150noreply@blogger.com