tag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post9113005796459797046..comments2024-03-28T21:04:40.074+05:30Comments on उच्चारण: “उग रहे भवन भारी..” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'http://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-25488884920620106242010-12-02T15:39:06.696+05:302010-12-02T15:39:06.696+05:30बालक तरसे मूँगफली को, बिल्ले खाते हैं हलवा,
सत्त...बालक तरसे मूँगफली को, बिल्ले खाते हैं हलवा, <br />सत्ता की कुर्सी हथियाकर, काजू खाता है कलवा, <br />निर्धन कृषक कमाता माटी, दाम कमाता व्यापारी। <br />शस्यश्यामला धरती पर, उग रहे भवन भारी-भारी।। <br /><br /><br />आज की सामाजिक व्यवस्था पर सटीक व्यंग्य..आभारKailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-70793434526368907662010-12-02T14:42:03.957+05:302010-12-02T14:42:03.957+05:30उग रहे भवन भारी -भारी
मिटाकर खूबसूरत वन उपवन
कर रह...उग रहे भवन भारी -भारी<br />मिटाकर खूबसूरत वन उपवन<br />कर रहे अपकार भारी ....<br />बिगड़ते प्राकृतिक संतुलन पर अच्छी कविता<br />आभार !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/10839893825216031973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-735507603531713052010-12-02T09:59:04.202+05:302010-12-02T09:59:04.202+05:30आज कि परिस्थिति को सहज और अरलता से सटीक शब्द दिए ह...आज कि परिस्थिति को सहज और अरलता से सटीक शब्द दिए हैं ...सुन्दर छंद बद्ध रचना ..संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-14878146877934815322010-12-02T08:48:56.040+05:302010-12-02T08:48:56.040+05:30abhi to aur ugne baaki hai guru ji...dekhte rahiye...abhi to aur ugne baaki hai guru ji...dekhte rahiye!सुरेन्द्र "मुल्हिद"https://www.blogger.com/profile/00509168515861229579noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-66501451677502819622010-12-02T07:06:01.871+05:302010-12-02T07:06:01.871+05:30.
सार्थक एवं सामयिक कविता। समाज जिस तेजी से गर्त ....<br /><br />सार्थक एवं सामयिक कविता। समाज जिस तेजी से गर्त में जा रहा है , उसका बेहतरीन चित्रण किया है आपने इस कविता में। अब तो आम जनता गरलपान के लिए ही मजबूर है। <br /><br />.ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-14395341930424058682010-12-01T23:34:55.430+05:302010-12-01T23:34:55.430+05:30मन-संस्कृति में बदलाव आ रहा है।मन-संस्कृति में बदलाव आ रहा है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-44565232495007354802010-12-01T22:50:45.488+05:302010-12-01T22:50:45.488+05:30अच्छी रचना, थोड़ी सपाट है इसमें बिम्बों का कुछ प्रय...अच्छी रचना, थोड़ी सपाट है इसमें बिम्बों का कुछ प्रयोग होता तो और अच्छी होती।ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηιhttps://www.blogger.com/profile/05121772506788619980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-81785339757786705642010-12-01T21:13:14.657+05:302010-12-01T21:13:14.657+05:30बहुत सटीक रचना.
रामराम.बहुत सटीक रचना.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-25763432033415502272010-12-01T20:52:49.576+05:302010-12-01T20:52:49.576+05:30इस पीड़ा क कोई अन्त भी तो नहीं दीखता.इस पीड़ा क कोई अन्त भी तो नहीं दीखता.भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-38306048746448698902010-12-01T20:48:02.186+05:302010-12-01T20:48:02.186+05:30शस्यश्यामला धरती पर, उग रहे भवन भारी-भारी.niceशस्यश्यामला धरती पर, उग रहे भवन भारी-भारी.niceRandhir Singh Sumanhttps://www.blogger.com/profile/18317857556673064706noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-41727785341598050182010-12-01T20:34:44.433+05:302010-12-01T20:34:44.433+05:30सारी वस्तुस्थिति लिख डाली !!!
सारगर्भित रचना!
सादर...सारी वस्तुस्थिति लिख डाली !!!<br />सारगर्भित रचना!<br />सादर!अनुपमा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/09963916203008376590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-6517290504661870202010-12-01T20:11:17.910+05:302010-12-01T20:11:17.910+05:30सब्जी, चावल और गेँहू की, सिमट रही खेती सारी।
शस्यश...सब्जी, चावल और गेँहू की, सिमट रही खेती सारी।<br />शस्यश्यामला धरती पर, उग रहे भवन भारी-भारी।। <br />सही बात है शायद कभी ऐसा समय भी आयेगा जब सब कुछ हमे गमलों मे उगाना पडेगा। बडःाती हुयी आबादी और विकास से जगह ही कहाँ बचेगी। बहुत अच्छी रचना । बधाई।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-41147930435806310742010-12-01T19:57:05.090+05:302010-12-01T19:57:05.090+05:30आज के हालात का सटीक चित्रण्……………सुन्दर रचना।आज के हालात का सटीक चित्रण्……………सुन्दर रचना।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-69196168394119723022010-12-01T19:50:05.258+05:302010-12-01T19:50:05.258+05:30बालक तरसे मूँगफली को, बिल्ले खाते हैं हलवा,
सत्त...बालक तरसे मूँगफली को, बिल्ले खाते हैं हलवा, <br />सत्ता की कुर्सी हथियाकर, काजू खाता है कलवा, <br />बेहतरीन समसामयिक रचना <br />स्थिति यहीं है और अवसर भी तो हमी दे रहे हैंM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-91355282506220558092010-12-01T19:49:55.042+05:302010-12-01T19:49:55.042+05:30उत्कृष्ट भाव ,उत्तम रचना .Hats off to you Sir!उत्कृष्ट भाव ,उत्तम रचना .Hats off to you Sir!shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.com