आसमान में उड़ने वालो, नजर धरा पर भी डालो।
शोख नजारों, मूक इशारों, को भी तो देखो भालो।।
काँटों की चौकीदारी ही, सुमन खिलाती है,
दुनियादारी में निष्ठा ही, मीत मिलाती है,
कुण्ठाओं में कुढ़ने वालो, गीत प्रेम के गा लो।
शोख नजारों, मूक इशारों, को भी तो देखो भालो।।
दुख-सुख में सच्चे मन से, शामिल होना भी सीखो,
अपने अन्तस् की गलियों की, जिद्दी पंक उलीचो,
बिना बात ही अड़ने वालो, दीप स्नेह के बालो।
शोख नजारों, मूक इशारों, को भी तो देखो भालो।।
प्रीत मथानी लेकर ढूँढो, अमृत के कण-कण को,
झंझावातों के सागर में, मत उलझाओ सुमन को,
मानवता से लड़ने वालो, दया-धर्म अपनालो।
शोख नजारों, मूक इशारों, को भी तो देखो भालो।।
प्रेरक एवं मार्ग दर्शक रचना है। आभार।
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TSALIIM
SBAI
bahut hi prernadayi kavita.
जवाब देंहटाएंआसमान में उड़ने वालो, नजर धरा पर भी डालो।
जवाब देंहटाएंsir
Very Nice poem.......................thanx 2u.
MUMBAI TIGER
HEY PRABHU YEH TERAPANTH
प्रेरणा देती है यह रचना ..शुक्रिया इसको पढ़वाने का
जवाब देंहटाएंसच मे दया धर्म अपनाने की ज़रूरत है॥
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक बेहतरीन रचना.
जवाब देंहटाएंआसमान में उड़ने वालो, नजर धरा पर भी डालो।
जवाब देंहटाएंक्या खूब कह दिया आपने....प्रेरणा देने वाले रचना..बधाई.
कांटो की पहरेदारी ही..फूल खिलाती है....बहुत गहरी बात कही है आपने. अति सुन्दर भाव!!
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावशाली व्यंग्य-बाणों का
जवाब देंहटाएंप्रक्षेपण किया है आपने!
विकसित समझवाले ही इससे
सही दिशा में प्रेरित हो पाएँगे!
बहुत ही उत्प्रेरक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंरामराम.