धूप के संसार में
लोग
मोम जैसे बन गये हैं,
हर चेहरा,
सुबह को कुछ और है,
जाना पहचाना सा लगता है,
परन्तु
शाम तक,
पिघल जाता है
और
बदसूरत हो जाता है,
वह
अपना रूप,
आकृति
सब कुछ बदल लेता है।
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
और शहर जैसे जंगल हो जाता है।
जवाब देंहटाएंsach ye sansaar aur iski har aakriti aisi hi hai...........bahut hi thode shabdon mein bahut hi gahri baat kah di apne.
जवाब देंहटाएंbadhayi sweekarein.
सही बात कही है जी आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
धूप,मोम और आदमी ख़ूब
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
प्रतीकों के सहारे गहरी बात कही आपने।
जवाब देंहटाएं-----------
SBAI TSALIIM
बिल्कुल सही कहा आपने.. आभार
जवाब देंहटाएंधूप के संसार में लोगमोम जैसे बन गये हैं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन उपमाएं......
धूप के इस संसार में
जवाब देंहटाएंमोम बन चुके मनुष्य का
भोर के समय जाना-पहचाना
लगनेवाला चेहरा
संध्या से पहले ही पिघलकर
विकृत हो जाता है
और वह
अपना मनुष्यत्व खो देता है!
मनुष्य को पुन: बनने के लिए मनुष्य
चाहिए होती है
एक पूरी स्याह रात!
विचारणीय यह है कि
अगर उसके जीवन में
यह रात न आए,
तो क्या होगा!
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण !!!
जवाब देंहटाएंsach hai aisa hi hai. umda rachna.
जवाब देंहटाएं