जो कमजोर वजीरे-आजम की, स्वर लहरी बोल रहे थे।
शासन स्वयं चलाने को, मुँह में रसगुल्ले घोल रहे थे।।
उनको भारत की जनता ने, सब औकात बता डाली है।
कितनों की संसद में जाने की, अभिलाष मिटा डाली है।।
मनसूबे सब धरे रह गये, सपने चकनाचूर हो गये।
आशा के विपरीत, मतों को पाने को मजबूर हो गये।।
फील-गुड्ड के नारे को तो, पहले ही ठुकरा डाला था।
अब भी नही निवाला खाया, जो चिकना-चुपड़ा डाला था।।
माया का लालच भी जन, गण, मन को, कोई रास न आया।
लालू-पासवान के जादू ने, कुछ भी नही असर दिखाया।।
जिसने जूता खाया, उसको हार, हार का हार मिला है।
पाँच साल तक घर रहने का, बदले में उपहार मिला है।।
लोकतन्त्र के महासमर में, असरदार सरदार हुआ है।
ई.वी.एम. के भवसागर में, फिर से बेड़ा पार हुआ है।।
जनता की उम्मीदों पर, अब इनको खरा उतरना होगा।
शिक्षित-बेकारों का दामन, रोजगार से भरना होगा।।
फील-गुड्ड के नारे को तो, पहले ही ठुकरा डाला था।
जवाब देंहटाएंअब भी नही निवाला खाया,जो चिकना-चुपड़ा डाला था।।
जिसने जूता खाया,उसको हार,हार का हार मिला है।पाँच साल तक घर रहने का, बदले में उपहार मिला है।।
वाह शास्त्री जी...........
जवाब देंहटाएंनेताओं को भी अच्छा धोया है आपने........
मजा आ गया
भाई प्रेम फर्रूखाबादी जी।
जवाब देंहटाएंअपनी टिप्पणी मैं कुछ कहो तो सही।
आपने तो मेरा ही छंद दुहरा दिया है।
Sahi kaha...
जवाब देंहटाएंSundar sarthak samsamyik rachna...
बहुत करारा व्यंग्य रचा है,
जवाब देंहटाएंबहुत करारी हार पर!
very very good
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया। बस नेताओं को अब तो जनता की सुननी ही होगी।
जवाब देंहटाएंbahut badhiya.
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