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मंगलवार, 19 मई 2009
‘‘मेरी गैया बड़ी निराली’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंये बाल कविता बड़ी ही प्यारी है. पहले तो मैं सोच रहा था कि ये गाय और बछडा आपका ही है लेकिन बाद में आपने लिख दिया कि गूगल से साभार.
कविता तो आपकी वास्तव में बड़ी प्यारी है शास्त्री जी. लेकिन मैं सोच रहा हूं कि हमारे प्यारे भारतवर्ष में बिना मिलावट के कैसे चलेगा? गैया लोग खा पाएगा खाली घास-घास? उन लोग का पेट नहीं ख़राब हो जाएगा! हम लोग का तो पेटे ख़राब हो जाता है बिना पानी वाला दूध पी के.
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी.. बहुत सरल... बहुत प्रभावी.. मजा आ गया..
जवाब देंहटाएंbahut hee sunder kavita hai isse bachon ko gaye ke bare me bahut kuchh pata chalega badhai
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बाल कविता, इसके बाल सुलभ भाव इसे बहुत ही लाजवाब बना रहे हैं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बाल कविता बड़ी ही प्यारी है..
जवाब देंहटाएंइस कविता की प्रशंसा तो मैं तभी कर चुका था, जब पहली बार इसे फुलबगिया में टिप्पणी के रूप में पढ़ा था!
जवाब देंहटाएंhttp://fulbagiya.blogspot.com/2009/04/blog-post_11.html#comments
जवाब देंहटाएं--------------------
इस कविता के लिए तो
रंजन जी के शब्द ही सबसे सटीक हैं -
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बहुत ही प्यारी ... ... .
बहुत सरल ... ... .
बहुत प्रभावी ... ... .
मज़ा आ गया ... ... .
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एक पंक्ति और बढ़ाने का जी कर रहा है -
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मन को छू लेनेवाली ... ... .
प्यारी सी....मन को छु लेने वाली बाल कविता............लाजवाब
जवाब देंहटाएंगौ माता को समर्पित लिखी गयी कविता बहुत ही सुन्दर है
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी न्यारी कविता...
जवाब देंहटाएंबचपन के आंगन में ले जाने का शुक्रिया डाक्साब...
sach aapki kavita bahut hi nirali hai .....bilkul gaiya ki tarah.
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya.