जिसने कभी नही पाया, ममता का गहरा सागर।
सूनी होगी चादर, सूखी सी होगी उसकी गागर।।
मधुवन में मधुमास नही, पतझड़ उसको मिलते होंगे।
उसके जीवन में खुशियों के, फूल कहाँ खिलते होंगे।।
ममता की जब छाँव नही, अमृत भी गरल सने होंगे।
आशाएँ सब सूनी होंगी, पथ सब विरल घने होंगे।।
कृष्ण-कन्हैया को द्वापर में, मिला यशोदा का आँचल।
कलयुग में क्या मिल पायेगा, ऐसी माता का आँचल।।
हे प्रभो! बालक दो तो उसको, माता की छाया देना।
माँ को पास बुलाते हो तो, शिशु को मत काया देना।।
हे प्रभो! बालक दो तो उसको, माता की छाया देना।
जवाब देंहटाएंमाँ को पास बुलाते हो तो, शिशु को मत काया देना।।
बहुत ही सुन्दर रचना
भावुक पंक्तियाँ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण पंक्तियाँ हैं। वाह।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत सुंदर शाश्त्री जी, नमन आपको.
जवाब देंहटाएंरामराम.
man ko chhoti marmik abhivyakti hai abhar
जवाब देंहटाएंsundar rachna
जवाब देंहटाएंभावुक कविता.. ईश्वर कभी किसी को ममता से महरूम नहीं रखे
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिखा है .. सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसच है, बिन माता के
जवाब देंहटाएंजीवन सूना-सूना रहता है!
बिन माँ के हँस लें कितना भी
अंतर्मन तो रोता है!
अत्यन्त सुन्दर...
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण रचना है, शास्त्री जी.
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