मेरी पतंग बड़ी मतवाली।
मैं जब विद्यालय से आता,
खाना खा झट छत पर जाता।
पतंग उड़ाना मुझको भाता,बड़े चाव से पेंच लड़ाता।
पापा-मम्मी मुझे रोकते,
बात-बात पर मुझे टोकते।
लेकिन मैं था नही मानता,
इसका नही परिणाम जानता।
वही हुआ था, जिसका डर था,
अब मैं काँप रहा थर-थर था।
लेकिन मैं था ऐसा हीरो,
सब विषयों लाया जीरो।
अब नही खेलूँगा यह खेल,
कभी नही हूँगा मैं फेल।
आसमान में उड़ने वाली,
जो करती थी सैर निराली।
मैंने उसे फाड़ डाला है,
छत पर लगा दिया ताला है।
मित्रों! मेरी बात मान लो,
अपने मन में आज ठान लो।
पुस्तक लेकर ज्ञान बढ़ाओ।
थोड़ा-थोड़ा पतंग उड़ाओ।।
(चित्र गूगल खोज से साभार)
मैंने भी ख़ूब उड़ायी है पतंग लेकिन फ़ेल कभी नहीं हुआ और न होने वाला हूँ... बढ़िया रचना है
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तख़लीक़-ए-नज़र
खुद भी बचपन में गये, साथ में मुझे भी ले गए।
जवाब देंहटाएंबातों बातों में बच्चे को, गम्भीर सीख दे गए।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
bacchon ko seekh deti kavita hai magar mujhe lagta hai ki ye nirala khel bachon se chheenane ki bajaye unhen ise savdhani aur kabhi kabhi khelane ki seekh deni chahiye patang ki udan bachon me akash chhune ki bhavna bhar deti hai magar kavita bahut sunder hai ye bachon ko padhne ke liye prerit karti hai abhar
जवाब देंहटाएंपतंग तो इस भारत यात्रा में भी तनाई..पास ही लौटे. :)
जवाब देंहटाएंमैंने भी ख़ूब उड़ायी है पतंग
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता जी, आभार
हिंदी फिल्मो की तरह अंत बहुत अच्छा रहा कविता का...पतंग उडाओ पर साथ में पास भी होके दिखाओ...
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी ,
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता है ! मैं समझता हूँ कि पतंग से आपका गूढ़ तात्पर्य शायद कोरी ऊँची उडान भरने और ख्याली पुलाव पकाने से है !
बचपन की याद दिला देते हैं आप तो इन रचनाओं मे.
जवाब देंहटाएंरामराम.
patang udana to bharat ki parampara mein raha hai...........shayad har bachcha udata hai ek na ek baar ya koshish karta hai.......nirmala ji ne sahi kaha........main bhi unse sahmat hun.
जवाब देंहटाएंhan aapne bachchon ke liye jo likha hai wo bahut hi sundar hai.
अतिशयोक्ति!
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