तितली रानी कितनी सुन्दर।
भरा हुआ इसके पंखों में,
रंगों का है एक समन्दर।।
उपवन में मंडराती रहती,
फूलों का रस पी जाती है।
अपना मोहक रूप दिखाने,
यह मेरे घर भी आती है।।
भोली-भाली और सलोनी,
यह जब लगती है सुस्ताने।
इसे देख कर एक छिपकली,
आ जाती है इसको खाने।।
आहट पाते ही यह उड़ कर,
बैठ गयी है चौखट के ऊपर।
मेरा मन भी ललचाया है,
मैं भी देखूँ इसको छूकर।।
इसके रंग-बिरंगे कपड़े,
होली की हैं याद दिलाते।
सजी धजी दुल्हन को पाकर,
बच्चे फूले नही समाते।।
बहुत सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अब तो अंतरजाल पर
जवाब देंहटाएंबालकविताओं की कमी
नहीं रह जाएगी!
बहुत प्यारी बाल कविता...
जवाब देंहटाएंbadhiya baal kavita.
जवाब देंहटाएंwaah bachchon ke liye badi hee manmohak kavitaa lagi ...titlee kaa chitra bhee sundar hai...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर काव्य है
जवाब देंहटाएं