(1) एक क्लिक में शुरू एक क्लिक में खत्म नेट की दोस्ती (2) बसन्त में बहार झाड़ियों पर निखार चार दिन की चाँदनी फिर है अंधियार (3) सोलह सिंगार ऊब गया मन सूखा सावन मुर्झाया सुमन |
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अच्छी क्षणिकायें हैं डॉक्टर साहब ..लेकिन व्यंग्य में ही सही कुछ निराशा झलक रही है ।
जवाब देंहटाएंएक क्लिक में शुरू
जवाब देंहटाएंएक क्लिक में खत्म
नेट की दोस्ती
दिलचस्प!!
अच्छी क्षणिकाएं हैं।बधाई।
जवाब देंहटाएंसोलह सिंगार
जवाब देंहटाएंऊब गया मन
सूखा सावन
मुर्झाया सुमन
nice
बहुत बढ़िया क्षणिकाएँ!
जवाब देंहटाएं--
मेरे मन को भाई : ख़ुशियों की बरसात!
--
संपादक : सरस पायस
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंअच्छी क्षणिकायें
जवाब देंहटाएंइस बार निराशा क्यों??
जवाब देंहटाएंgood
जवाब देंहटाएंbahut khub
an
waqy me acha laga aap ka chint
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
ye bhi ek andaaz hai aapka
जवाब देंहटाएंumdaa hai !
सन्देश देती हुई क्षणिकाएं....आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया क्षणिकायें.
जवाब देंहटाएंबहुते बढिया क्षणिकाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
एक क्लिक में दोस्ती ...एक क्लिक में ख़त्म ...
जवाब देंहटाएंचार दिन की चांदनी ...फिर अँधेरी
आभासी संसार की दोस्ती पर अच्छा व्यंग्य ...