"My River a poem": Emily Dickinsonअनुवादक :डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” |
मेरी कविता, सरिता जैसी चलती है। नीले सागर से, जाकर यह मिलती है। सिन्धु प्रतीक्षारत है स्वागत करने को। मुझे बुलाता आलिंगन में भरने को। धीर और गम्भीर विनय का सागर है। नदिया तो छोटी सी जल की गागर है। मैं कहती हूँ ले लो मेरा तन और मन। सागर सरिता का होता है घर-आँगन!! |
Emily Dickinson Born December 10, 1830 Died May 15, 1886 |
बहुत सुन्दर कविता का सुन्दर अनुवाद
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंwow ...very nice
जवाब देंहटाएंunfortunately when i open this blog in IE ...it crashed and when i opened in MaxThon (another browser) ..it does open but upon clicking the comment button ..it opened some weired website ...pls dekh lena kuch ulta seedha to nahi laga rakhaa ...thought to tell u my expereince...
वाह....जितनी खूबसूरत कविता उतना ही सुन्दर अनुवाद....आनंद आया पढ़ कर...
जवाब देंहटाएं@ राम त्यागी जी!
जवाब देंहटाएंमेरे यहाँ तो सब कुछ ठीक ही खुल रहा है!
बढ़िया अनुवाद!
जवाब देंहटाएं--
रंग-रँगीला जोकर
माँग नहीं सकता न, प्यारे-प्यारे, मस्त नज़ारे!
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संपादक : सरस पायस
सुन्दर रचना एवं अनुवाद!
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna
जवाब देंहटाएंacha laga pad kar
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
waah, ek baar phir bahoot khoobsoorat kavita aur anuvaad.
जवाब देंहटाएंमुझे बुलाता
जवाब देंहटाएंआलिंगन में भरने को।
धीर और गम्भीर
bahut khub
बहुत बढिया रचना, अनुवाद बहुत ही सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
@ डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लाग पर टिप्पणी कर मेरा उत्साह वर्धन किया-धन्यवाद ! आपकी रचना सारगर्भित विचरों से ओत-प्रोत है- बधाई!
bahut hee sunndar kavita guru ji.
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