जरा सी बात में ही, युद्ध होते हैं बहुत भारी। जरा सी बात में ही, क्रुद्ध होते हैं धनुर्धारी।। जरा सी बात ही माहौल में, विष घोल देती है। जरा सी जीभ ही कड़ुए वचन, को बोल देती है।। मगर हमको नही इसका, कभी आभास होता है। अभी जो घट रहा कल को, वही इतिहास होता है।। |
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रविवार, 25 अप्रैल 2010
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बिलकुल सही लिखा जी जरा सी बात कई बार बहुत अनर्थ कर देती है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इस सुंदर कविता के लिये
बात तो जरा सी होती है पर हश्र ---
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा, तिल का हि ताड बनता है. जब बाद में गलत फ़हमियां दूर होती हैं तब बहुत पछतावा होता है. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह शास्त्री जी बहुत ही बेहतरीन पंक्तियां लिखी हैं आपने और आज के समय के अनुकूल भी एकदम सटीक । शुभकामनाएं आपको
जवाब देंहटाएंअजय भाई से सहमत ! आप कों नमन !
जवाब देंहटाएंbilkul sateek.... regards.....
जवाब देंहटाएं" samay ke saath likkhi rachana "
जवाब देंहटाएं----eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
achchi seekh mili...dhanyawaad...
जवाब देंहटाएंअभी जो घट रहा कल को,
जवाब देंहटाएंवही इतिहास होता है।।
aacha sandesh..
bahut hi badhiya rachna sir....ek hi saans me kavita khatm hoti hai ...par kai saanson tak chalti hai ...
जवाब देंहटाएं... बेहद प्रभावशाली रचना!!!!
जवाब देंहटाएंBadhiyaa raxhnaa shastree ji
जवाब देंहटाएंवही इतिहास होता है।
जवाब देंहटाएंबढिया परिभाषा इतिहास की।
वाह्…………बहुत ही सुन्दर शब्दो के माध्यम से यथार्थ बोध करा दिया…………………गज़ब की प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंएकदम सही बात है।
जवाब देंहटाएंरहिमन जिह्वा बावरी कहिगै सरग पाताल,
आपु तो कहि भीतर रही, जूती सहत कपाल।
मगर हमको नही इसका,
जवाब देंहटाएंकभी आभास होता है।
अभी जो घट रहा कल को,
वही इतिहास होता है।।
ये ज़रा सी बात ही ना जाने कितने युद्धों का कारण बनी है...शिक्षाप्रद रचना
prabhaavshaali rachnaa.
जवाब देंहटाएं