उत्तराखण्ड सरकार विवेकशून्य! "असंगत शासनादेश”
स्थायी निवास प्रमाणपत्र के लिए
15 वर्षों का निवासी
लेकिन जाति प्रमाणपत्र के लिए
52 साल का बाशिन्दा होना जरूरी?
देहरादून में बैठी उत्तराखण्ड सरकार ने पिछड़ी जातियों के प्रमाणपत्र के लिए 16 अप्रैल,2010 को एक अजीबोगरीब शासनादेश जारी किया है! जिसमें उसने - अहीर (यादव) अरख काछी (कुशवाहा, शाक्य आदि) कहार (कश्यप) केवट या मल्लाह (निषाद) किसान कोइरी कुम्हार (प्रजापति) कुर्मी (पटेल, सैंथवा, मल्ल आदि) कसगर कुँजड़ा गूजर गडेरिया गद्दी आदि 55 पिछड़ी-जातियों के जाति-प्रमाणपत्र निर्गत करने के लिए कट-ऑफ डेट 1958 रखी है! इसके अतिरिक्त व्यक्ति का सन् 1958 से 15 साल पहले का निवासी होने का फरमान जारी किया है! जिस समय मैं अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य था उस समय आसानी से जाति प्रमाणपत्र लोगों को मिल जाते थे! इसके बाद शासनादेश आया कि पिछड़ी जाति का प्रमाणपत्र लेने वालों के लिए 40 साल से उत्तराखण्ड के भूभाग पर रहना आवश्यक होगा! अर्थात उस व्यक्ति के दादा भी यहीं के निवासी होने चाहिएँ! इतने से भी भा.ज.पा.सरकार का दिल नही भरा तो उसने 67 साल का निवासी होने का अजीबोगरीब शासनादेश जारी कर लोगों को मुश्किल में डाल दिया है! यह इस सरकार के मानसिक दिवालियेपन का नायाब उदाहरण है! अर्थात् आजादी से भी 4 साल पूर्व का बासिन्दा होना व्यक्ति को आवश्यक हो गया है! यहाँ तक खटीमा क्षेत्र का सवाल है तो इतना तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि जब देश स्वतन्त्र हुआ था उस समय यहाँ शेर-चीते और हाथियों का निवास था! क्या सरकार शेर-चीते और हाथियों को ही जाति प्रमाणपत्र जारी करेगी! (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”) पूर्व सदस्य अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग, (उत्तराखण्ड सरकार) |
sach me samasya vikral hai
जवाब देंहटाएंmere desh ka ye haal hai
aur janta behal hai
itna hi kah sakti hun.
बहुत गम्भीर मामला है..
जवाब देंहटाएंमैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि जब देश स्वतन्त्र हुआ था उस समय यहाँ शेर-चीते और हाथियों का निवास था!
जवाब देंहटाएंदेखिए किसका प्रमाण पत्र जारी होता है ??
हिन्दुस्तान के नेताओं की बुद्धि तो सचमुच में घास चरने चली गई है.....
जवाब देंहटाएंआज के नेता भी तुगलकी हुक्म जारी करने लगे हैं ... इनको कौन समझाए ...
जवाब देंहटाएंHa-ha-ha...सीधी-खरी बात तो ये है शास्त्री जी, जिस राज्य का गठन ही २०००-०१ में हुआ हो वह भला किसी को इतना पुराना मूल प्रमाणपत्र कैसे मांग सकता है ? उससे पहले तो वे ये कह सकते है कि हम उप के निवासी थे ! अंधेर नगरी.....
जवाब देंहटाएंगधे बेठे है आज सारे कुर्सियो पर जिन्हे हम नेता समझते है
जवाब देंहटाएंबहुत अजीब सी स्थिति है....और सरकार के बड़े विचित्र आदेश हैं...इसी को कहते हैं अंधेर नगरी....
जवाब देंहटाएंअजी मैं तो कहता हूं कि यह जाति वाति का झंझट ही खत्म कर दिया जाये।
जवाब देंहटाएंसब के सब गर्मी से पगला गए है !
जवाब देंहटाएंबहुत महत्त्वपूर्ण राज़ खोला है!
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मेरा मन मुस्काया -
झिलमिल करते सजे सितारे!
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संपादक : सरस पायस
sahi baat kehi hai....
जवाब देंहटाएंraj bhatiya ji ki baat se puri agree hoon :)
जवाब देंहटाएंहमारे देश का हाल बहुत ही बुरा है और सारे नेता सिर्फ़ डिंग हांकते हैं और करने को कुछ भी नहीं करते!
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