मेरे नीरस गानों को तुम कब तक यों ही गाओगे! टूटे-फूटे छंदों को तुम कब तक यों दुहराओगे!! सपनों सागर में गोते खाना इतना ठीक नहीं, कब तक खारे पानी से अपने मन को भरमाओगे! टूटे-फूटे छन्दों को तुम कब तक यों दुहराओगे!! सूरज की ऊर्मियाँ सँवारी तुमने नही करीने से, पसरी है पश्चिम में, कैसे इनको वापिस लाओगे! टूटे-फूटे छन्दों को तुम कब तक यों दुहराओगे!! तितलीं, भँवरे, मधुमक्खी का वीराने में काम नही, कागज के फूलों से कब तक अपना दिल बहलाओगे! टूटे-फूटे छन्दों को तुम कब तक यों दुहराओगे! |
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शनिवार, 10 अप्रैल 2010
“कब तक दुहराओगे” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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nice
जवाब देंहटाएंसपनों सागर में गोते खाना इतना ठीक नहीं,
जवाब देंहटाएंकब तक खारे पानी से अपने मन को भरमाओगे!
बहुत सुन्दर गीत है शास्त्री जी. बधाई.
एक अनुरोध आदरणीय सुमन जी से, कि आप अपना टिप्पणी देने का अन्दाज़ बदल दें प्लीज़....हर जगह केवल "Nice" से काम नहीं चलता. कुछ दारुण-करुण मुद्दों पर भी पोस्ट होती हैं, जहां ’ nice" की ज़रूरत नहीं होती. उम्मीद है, मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगे.
मेरे नीरस गानों को तुम कब तक यों ही गाओगे!
जवाब देंहटाएंटूटे-फूटे छंदों को तुम कब तक यों दुहराओगे!!
सपनों सागर में गोते खाना इतना ठीक नहीं,
कब तक खारे पानी से अपने मन को भरमाओगे!
टूटे-फूटे छन्दों को तुम कब तक यों दुहराओगे!!
kya baat kahi di aapne bahut hi badhiya .."
" eksunder post ke liye badhai "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
तितलीं, भँवरे, मधुमक्खी का वीराने में काम नही,
जवाब देंहटाएंकागज के फूलों से कब तक अपना दिल बहलाओगे!
बहुत सुन्दर गीत
सटीक
शानदार गीत!!
जवाब देंहटाएंसूरज की ऊर्मियाँ सँवारी तुमने नही करीने से,
जवाब देंहटाएंपसरी है पश्चिम में, कैसे इनको वापिस लाओगे!
टूटे-फूटे छन्दों को तुम कब तक यों दुहराओगे!!
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब गीत! मेरा नाम भी आ गया क्या बात है! बहुत अच्छी लगी!
एक नयी दिशा देती हुई सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंhay
जवाब देंहटाएंजब तक अच्छे लगेंगे...तब तक....और क्या....भले ये आपके गीत हों मगर एक बार यहाँ आने के पश्चात् आपसे ज्यादा हमारी अमानत है .....है कि नहीं ....आपका काम है लिखना...लिखिए ना....हमारा काम है गाना...गायेंगे.....और क्या....??
जवाब देंहटाएंशानदार, लाजवाब अति उत्तम गीत्।
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