चरण-कमल वो धन्य हैं, समाज को जो दें दिशा, वे चाँद-तारे धन्य हैं, हरें जो कालिमा निशा, प्रसून ये महान हैं, प्रकृति है सँवारती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। जो चल रहें हैं, रात-दिन, वो चेतना के दूत है, समाज जिनसे है टिका, वे राष्ट्र के सपूत है, विकास के ये दीप हैं, मही इन्हें दुलारती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। जो राम का चरित लिखें, वो राम के अनन्य हैं, जो जानकी को शरण दें, वो वाल्मीकि धन्य हैं, ये वन्दनीय हैं सदा, उतारो इनकी आरती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। |
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मंगलवार, 30 नवंबर 2010
"चरण-कमल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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सराहनीय कविता।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा है आपने... मुझे इस बात से बड़ी तकलीफ होती है यदि कोई जन्म के आधार पर भेदभाव करता है. कोई भी.
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna.. bahut acchi baat kehti..seekh deti..
जवाब देंहटाएंबाऊ जी,
जवाब देंहटाएंनमस्ते!
आपकी कविता अच्छी लगी. जन्म-जाति-धर्म के अधर पर भेदभाव नहीं होना चाहिए.
इस सन्दर्भ में मेरे चिट्ठे पर प्रायश्चित पढ़ें. उम्मीद है आपको भायेगा.
आशीष
--
नौकरी इज़ नौकरी!
क्षमा करें, अधर को आधार पढ़ा जाये.
जवाब देंहटाएंआशीष
--
नौकरी इज़ नौकरी!
समाज को जो दें दिशा,
जवाब देंहटाएंवे चाँद-तारे धन्य हैं!
wah wah wah!!
wah....bahut badhiya kavita.aabhaar.
जवाब देंहटाएंwah.behad sunder bhaw.
जवाब देंहटाएंचरण-कमल वो धन्य हैं,
जवाब देंहटाएंसमाज को जो दें दिशा,
वे चाँद-तारे धन्य हैं,
हरें जो कालिमा निशा
बहुत सुन्दर गीत ...
हमेशा की तरह सुन्दर और लाजवाब रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शब्द चित्रण्……………आज की समस्या को भी बखूबी चित्रित किया है।
जवाब देंहटाएंजो चल रहें हैं, रात-दिन,
जवाब देंहटाएंवो चेतना के दूत है,
समाज जिनसे है टिका,
वे राष्ट्र के सपूत है,
विकास के ये दीप हैं, मही इन्हें दुलारती।
सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।।
सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति!