क्रोध को उत्तर हँसी में, जो सुनाना जानता है! घाव पर वो ही तरल, मरहम लगाना जानता है!! वेदना को शब्द कोई, दे नहीं सकता कभी! जब लगी हो चोट कोई, आह उठती है तभी!! कर रहा जो, रात-दिन हो वन्दना, रोग सारे वो मिटाना जानता है! हो सुरीला कण्ठ तो, वीणा बजाती शारदा, मौन को छलती हमेशा, सलिल-सरिता शारदा, पर्वतों का क्षुद्र धारा, गीत गाना जानता है! रुदन तो नवजात का, लगता सभी को है भला, हो गया निष्प्राण तन, जब हंस नभ को उड़ चला, वो बिना परवाज़ के, |
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बुधवार, 18 मई 2011
"मरहम लगाना जानता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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रुदन तो नवजात का,
जवाब देंहटाएंलगता सभी को है भला,
हो गया निष्प्राण तन,
जब हंस नभ को उड़ चला,
वो बिना परवाज़ के,
मंजिल स्वयं पहचानता है!
वाह वाह आपसे तो बात की बात मे रचनाये बनाना सीखना चाहिये…………बहुत ही सुन्दर नवगीत्…………गज़ब के भाव भरे हैं।
हो सुरीला कण्ठ तो,
जवाब देंहटाएंवीणा बजाती शारदा,
मौन को छलती हमेशा,
सलिल-सरिता शारदा,
पर्वतों का क्षुद्र धारा,
गीत गाना जानता हैprakarti ko sakaar kar diya aapne.jeevan chakra ke ird gird ghoomti rachna bahut bhali lagi.
रुदन तो नवजात का,
जवाब देंहटाएंलगता सभी को है भला,
हो गया निष्प्राण तन,
जब हंस नभ को उड़ चला,
वो बिना परवाज़ के,
मंजिल स्वयं पहचानता है!
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..बहुत प्रवाहमयी अभिव्यक्ति..
सुंदर शब्दों से आपने कमाल का गीत रच दिया है शास्त्री जी ..बहुत ही कमाल ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ....क्या प्रस्तुति है ..वाह
जवाब देंहटाएंajit
रुदन तो नवजात का,
जवाब देंहटाएंलगता सभी को है भला,
हो गया निष्प्राण तन,
जब हंस नभ को उड़ चला,
वो बिना परवाज़ के,
मंजिल स्वयं पहचानता है!
जवाब नहीं इस रचना का भी। इसमें तो आपने मौत और हयात का ज़िक्र भी किया और बहुत से दृश्य साक्षात भी कर दिये।
मज़ा आ गया इसे पढ़कर।
धन्यवाद !
रचना के प्रवाह की दाद देनी पड़ेगी और नवगीत में सहजता और सरलता का जो पुट है वो तो बस देखते ही बनता है .वाह.
जवाब देंहटाएंरुदन तो नवजात का,
जवाब देंहटाएंलगता सभी को है भला,
हो गया निष्प्राण तन,
जब हंस नभ को उड़ चला,
वो बिना परवाज़ के,
मंजिल स्वयं पहचानता है!
बहुत खूब ! बिलकुल नवजात शिशु की तरह ! मोहक और प्यारा -सा ..
...और यह जानकर और भी अजीब सा मज़ा आया कि आपने यह गीत अपना दर्द मिटाने के लिए लिखा है। बर्र ने आपके डंक मारा और आपके टीस उठी तो ऐसा मीठा गीत निकला ?
जवाब देंहटाएंआप एक सच्चे रचनाकार हैं।
आप एक सच्चे ब्लॉगर हैं।
क्योंकि आदर्श ब्लॉगर हर हाल में एक पोस्ट तैयार करता है।
देखें मेरा लेख :
कोई भी घटना हो तो एक आदर्श ब्लागर के दिमाग़ में तुरंत एक पोस्ट का विचार आना चाहिए . The ideal blogger
आप तो गीतों के जादूगर हैं.अब देखिये न बर्रैया ने काटा तो भी गीत निकाल लिया.ग़ज़ब है ग़ज़ब.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना|
जवाब देंहटाएंहो सुरीला कण्ठ तो,
जवाब देंहटाएंवीणा बजाती शारदा,
मौन को छलती हमेशा,
सलिल-सरिता शारदा,
पर्वतों का क्षुद्र धारा,
गीत गाना जानता
bahut hi sundar aur bhavprn geet.
bahut sundar .
जवाब देंहटाएंis kavita mei aapne jeevan ka saar likh diya
जवाब देंहटाएंbahut khub
बहुत ही सुन्दर नवगीत्...प्रवाहमयी अभिव्यक्ति..मज़ा आ गया इसे पढ़कर।
जवाब देंहटाएंरुदन तो नवजात का,
जवाब देंहटाएंलगता सभी को है भला,
हो गया निष्प्राण तन,
जब हंस नभ को उड़ चला,
वो बिना परवाज़ के,
मंजिल स्वयं पहचानता है!
bahut khoob babu ji...aabhar
hamara dil to baar baar aapki rachnaayein padhna jaanta hai!
जवाब देंहटाएंक्या बात है हुज़ूर.... बहुत ख़ूब !
जवाब देंहटाएंbahut sunder.
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी!
जवाब देंहटाएंदर्शनयुक्त सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंहर छंद खूबसूरत ...सुन्दर नवगीत
जवाब देंहटाएंक्रोध को हँसी से जीतने कि कला जिसे आ गयी वही मुकद्दर का सिकन्दर है, बहुत सुंदर प्रेरणादायी गीत !
जवाब देंहटाएंजहाँ सबके अहंकार घायल हों...वहां मरहम ही काम आएगा...जो दूसरों को खुश रखना जानता हो...उसे ही मंजिल का पाता होगा...सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं