ये गद्दार मेरा वतन बेच देंगे। ये गुस्साल ऐसे कफन बेच देंगे। बसेरा है सदियों से शाखों पे जिसकी, ये वो शाख वाला चमन बेच देंगे। सदाकत से इनको बिठाया जहाँ पर, ये वो देश की अंजुमन बेच देंगे। लिबासों में मीनों के मोटे मगर हैं, समन्दर की ये मौज-ए-जन बेच देंगे। सफीना टिका आब-ए-दरिया पे जिसकी, ये दरिया-ए गंग-औ-जमुन बेच देंगे। जो कोह और सहरा बने सन्तरी हैं, ये उनके दिलों का अमन बेच देंगे। जो उस्तादी अहद-ए-कुहन हिन्द का है, वतन का ये नक्श-ए-कुहन बेच देंगे। लगा हैं इन्हें रोग दौलत का ऐसा, बहन-बेटियों के ये तन बेच देंगे। ये काँटे हैं गोदी में गुल पालते हैं, लुटेरों को ये गुल-बदन बेच देंगे। हो इनके अगर वश में वारिस जहाँ का, ये उसके हुनर और फन बेच देंगे। जुलम-जोर शायर पे हो गर्चे इनका, ये उसके भी शेर-औ-सुखन बेच देंगे। ‘मयंक’ दाग दामन में इनके बहुत हैं, ये अपने ही परिजन-स्वजन बेच देंगे। |
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शनिवार, 2 जुलाई 2011
"ये गद्दार मेरा वतन बेच देंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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nice post
जवाब देंहटाएंबहुत सामयिक प्रस्तुति शास्त्री जी ! बस यही कहूंगा कि
जवाब देंहटाएंबस दो ही चीजें थी,
जो अंत में देने आती
इनका साथ,
एक फूल, दूजा कफ़न !
एक गले पड़ता,
दूसरा इनके शव चढ़ता,
मगर तब से वो भी
कतराने और शर्माने लगे है,
जबसे बेच खाया इन गद्दारों ने
अपना ही वतन !!!
ये अपने ही परिजन-स्वजन बेच देंगे।
जवाब देंहटाएंis pankti se bahut hi jyad uunchi hain ye panktiyan --
लगा हैं इन्हें रोग दौलत का ऐसा,
बहन-बेटियों के ये तन बेच देंगे।
bahut hi jabardast ||
सफीना टिका आब-ए-दरिया पे जिसकी,
ये दरिया-ए गंग-औ-जमुन बेच देंगे।
badhai ||
जवाब देंहटाएंलुटेरों को ये गुलबदन बेच देंगे .............
जवाब देंहटाएंबहुत खूब शास्त्री जी
झंडा उल्टा लटकाये जाने पर हल्ला मचाने वाली मीडीया को उल्टा लटका देश नही दिख रहा है
जवाब देंहटाएंसुंदर....समसामयिक भाव
जवाब देंहटाएंआद. शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत ,मन को उद्वेलित करने वाली ग़ज़ल लिखी है आपने !
समय को छू कर उसे महसूस कराने की क्षमता समाहित है इसमें !
आभार !
शब्दों की करारी चोट।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व् सार्थक रचना प्रस्तुत की है आपने .आभार
जवाब देंहटाएंलगा हैं इन्हें रोग दौलत का ऐसा,
जवाब देंहटाएंबहन-बेटियों के ये तन बेच देंगे।
ये काँटे हैं गोदी में गुल पालते हैं,
लुटेरों को ये गुल-बदन बेच देंगे।
बहुत खूब ..बढ़िया गज़ल
'सफीना टिका आब-ए-दरिया पे जिसकी,
जवाब देंहटाएंये दरिया-ए गंग-औ-जमुन बेच देंगे।
जो कोह और सहरा बने सन्तरी हैं,
ये उनके दिलों का अमन बेच देंगे।'
मौज़ू प्रस्तुति, हर इक मिसरा लाज़वाब...बधाई शास्त्री जी! आप तो ग़ज़लगोई में भी उस्ताद ठहरे
देश के ताजा तरीन हालातों पर गहरा तंज़ और क्षोभ झलक रहा है ...
जवाब देंहटाएंआम आदमी के गुस्से को शब्द दे दिए हैं आपने !
करारी ग़ज़ल सर...
जवाब देंहटाएंसादर...
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)ji aapake hote ye nahi ho sakata kyon ki aap logon ko jagarook kar rahen hain desh ki seva kar rahen hain thanx
जवाब देंहटाएंअगर कलम के सिपाही सो गये...
जवाब देंहटाएंतो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे...
बेहतरीन ग़ज़ल। विचारोत्तेजक और मन को उद्वेलित कर देने वाली।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर एवं सार्थक रचना! बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंपैसे के लिए तो यह अपने आप को बेच दें। देते भी हैं।
जवाब देंहटाएंदेश भक्ति से ओतपोत यह रचना काबिले तारीफ़ है शास्त्री जी ...धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंवतन बेच देंगें चमन बेच देंगें -ये खुद गरज कुछ भी बेच देंगें .अच्छी बहुत अच्छी मार्मिक रचना .
जवाब देंहटाएंलगा हैं इन्हें रोग दौलत का ऐसा,
जवाब देंहटाएंबहन-बेटियों के ये तन बेच देंगे।
...
बहुत सटीक प्रस्तुति..मन को उद्वेलित करती एक उत्कृष्ट रचना..आभार
mauka mile inko ye bhagwaan bhee bech denge!
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