सबसे पहले यह गीत पढ़िए |
उतना ही साहस पाया है। मृदु मोम बावरे मन को अब, मैंने पाषाण बनाया है।। था कभी फूल सा कोमल जो, सन्तापों से मुरझाता था, पर पीड़ा को मान निजी, आकुल-व्याकुल हो जाता था, इस दुनिया का व्यवहार देख, पथरीला पथ अपनाया है। मृदु मोम बावरे मन को अब, मैंने पाषाण बनाया है।। चिकनी-चुपड़ी सी बातों का, अब असर नहीं कोई होता, जिससे जल-प्लावन होता था, वो कब का सूख गया सोता, जो राग जगत ने है गाया, मैंने वो साज बजाया है, मृदु मोम बावरे मन को अब, मैंने पाषाण बनाया है।। झूठी माया, है झूठा जग, छिपकर बैठे हैं भोले ठग, बाहर हैं दाँत दिखाने के, खाने के मुँह में छिपे अलग, कमजोर समझकर शाखा को, दीमक ने पाँव जमाया है। मृदु मोम बावरे मन को अब, मैंने पाषाण बनाया है।। |
साहित्य शारदा मंच खटीमा के बैनर तले एक कविगोष्ठी का आयोजन किया गया! साधना न्यूज चैमल द्वारा इसकी कवरेज दिखाई गयी! आयोजक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" |
दुनिया की सच्चाई दर्शाता गीत.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
वीडियो भी देखा.बधाई आपको.
दुनिया के रंग हैं ये
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत....
झूठी माया, है झूठा जग,
जवाब देंहटाएंछिपकर बैठे हैं भोले ठग,
बाहर हैं दाँत दिखाने के,
खाने के मुँह में छिपे अलग,
कमजोर समझकर शाखा को,
दीमक ने पाँव जमाया है।
मृदु मोम बावरे मन को अब,
सही kiya shastri जी ये तो aapko बहुत pahle कर lena chahiye tha ये संसार है ही ऐसा .यहाँ मृदु मन की कद्र ही kise है.शानदार प्रस्तुति.badhai .
वाह ...बहुत ही बढि़या ...।
जवाब देंहटाएंbahut hee khoobsurat rachna guru jee!
जवाब देंहटाएंपहली बार यहाँ आया हूँ। बहुत सुन्दर और प्रवाहमयी कविता है। हर पंक्ति महत्वपूर्ण।
जवाब देंहटाएंवाह..क्या खूब कहा...!!
जवाब देंहटाएंचिकनी-चुपड़ी सी बातों का,
जवाब देंहटाएंअब असर नहीं कोई होता,
जिससे जल-प्लावन होता था,
वो कब का सूख गया सोता,
bahut umda rachna likhi hai apne, padh ker bahut sakun mila, bahut gehre bahv chupa rakhehai aapne apni is rachna m ein...........badhai
ख़ूबसूरत रचना और साथ में विडियो देखकर बहुत अच्छा लगा! अनुपम प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर........ख़ूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंआजकल सब जगह ऐसे ही व्य्वहार के लोग पाये जाते हैं. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंआपका अपना हृदय तो कभी पाषाण नहीं सकता. जिसमें प्रेम भरा है, वह बाहर छलक ही आयेगा, लाख रोकने की कोशिश कर लीजिये. गोष्ठी के सफल आयोजन के लिये पुन: बधाई..
जवाब देंहटाएंचन्दन जी पहली बार आये गुरुदेव की
जवाब देंहटाएंरचना का रसास्वादन किया ||
उन्हें बधाई ||
अब मैं तो हाजिरी लगा के ही निकल लेता हूँ ||
चिकनी-चुपड़ी सी बातों का,
जवाब देंहटाएंअब असर नहीं कोई होता,
जिससे जल-प्लावन होता था,
वो कब का सूख गया सोता,
जो राग जगत ने है गाया,
मैंने वो साज बजाया है,
मृदु मोम बावरे मन को अब,
मैंने पाषाण बनाया है।।
अरे मयंक जी, हमारी टिप्पणी का असर तो होगा ना? बड़ी दुविधा है अच्छा लिखूं तो
चिकनी-चपड़ी बात लगेगी, खिंचाई करूँ तो मन वैसे ही पाषाण हो गया है, फर्क नहीं पड़ेगा,
इसलिए लिख देता हूँ कि ठीकठाक रचना है, ज्यादा अच्छी भी नहीं है और उतनी खराब भी नहीं
पढी जा सकती है...
उच्च कोटि की कविता पढ़ कर यूँ बेसुध हुये मानों पाषाण हो गये.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर,बधाई.......
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
bahut sundar shashtri ji....mom bane is bawre mann ko ab pashan bnaya hai....kavi goshthi ke liye badhai..
जवाब देंहटाएंबनाना पड़ता है जी बनाना पड़ता है वर्ना आदमी जी ही नहीं पाएगा इस बेवफ़ा दुनिया में। इस तरह की आपसी सुख दुख की बातचीत के लिए
जवाब देंहटाएंब्लॉगर्स मीट अब ब्लॉग पर आयोजित हुआ करेगी और वह भी वीकली Bloggers' Meet Weekly
मन के भावों को बहुत खूबसूरती से लिखा है ...सच्चाई बताती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त पंक्तियाँ, सोचने को विवश करती हुयी।
जवाब देंहटाएंजीवन का सत्य यही है..... धीरे धीरे पाषाण बन जाते है.....कविता में बहुत प्रवाह था . अच्छी लगी रचना.....
जवाब देंहटाएंBahut accha likhte h sir aap,apne jeevan kaal me mai 1 baar aapse jaroor milna chahunga...
जवाब देंहटाएंसुंदर भावो से सजी एक कलात्मक रचना ..वीडियो भी अच्छा था ..बधाई ! ऐसे कार्यक्रमों का संचालन करने पर ..
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