सड़कछाप भी बन गये, अब तो लक्ष्मीदास। उल्लू बैठा शीश पर, करता भोग-विलास।1। वाणी में ताकत बढ़ी, देह हुई बेडौल। सत्ता पाने के लिए, रहा बोलियाँ बोल।2। आखिर पद मिल ही गया, देकर ऊँचे दाम। अब अपने सुख के लिए, ही होंगे सब काम।3। पौत्र और पड़पौत्र भी, अब भोगेंगे राज। पुश्त और दरपुश्त तक, करना पड़े न काज।4। यदि घोटाले खुल गये, मैं जाऊँगा जेल। लेकिन कुछ दिन बाद ही, मिल जाएगी बेल।5। जनता की होती बहुत, याददास्त कमजोर। बिसरा देती है सदा, कपटी-कामी-चोर।6। जितना चाहे लूट ले, तेरी है सरकार। सरकारी धन-सम्पदा, पर तेरा अधिकार।7। |
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बुधवार, 27 जुलाई 2011
"राजनीति के दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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bahut kub
जवाब देंहटाएंजनता की होती बहुत, याददास्त कमजोर।
जवाब देंहटाएंबिसरा देती है सदा, कपटी-कामी-चोर।
बहुत सुन्दर
bahut khub....sundr aur satik chitran kiya hai sattaadhariyon ki chhabi ka
जवाब देंहटाएंwah sir jee..kya khub kahi:)
जवाब देंहटाएंबेहद सटीक और शानदार दोहे लिखे है…………बहुत सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंwaha....bahut khub...har dohaa apne aap mei hi purn hai
जवाब देंहटाएंनमस्कार शास्त्री जी ... करार व्यंग है ... तमाचा मारा है आपने आज की गन्दी राजनीति को ... बहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंbahut hi behtreen kataaksh bhare dohe.kaash koi neta to padhe.iski copies banakar mantralyon me baant do.kuch ko to akal aa hi jayegi.
जवाब देंहटाएंयदि घोटाले खुल गये, मैं जाऊँगा जेल।
जवाब देंहटाएंलेकिन कुछ दिन बाद ही, मिल जाएगी बेल।
बिल्कुल सही लिखा है आपने! आज की राजनीती का सुन्दर चित्रण! ज़बरदस्त प्रस्तुती!
प्रभावशाली दोहे...
जवाब देंहटाएंतीखे और धारदार।
जवाब देंहटाएं............
प्रेम एक दलदल है..
’चोंच में आकाश’ समा लेने की जिद।
"जितना चाहे लूट ले, तेरी है सरकार।
जवाब देंहटाएंसरकारी धन-सम्पदा, पर तेरा अधिकार"
आदरणीय शास्त्री जी - साधुवाद
इनमें जहां एक ओर आज का यथार्थ है वहीं दूसरी ओर आज की परिस्थित पर करा व्यंग्य भी है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय श्री डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर,
sundar dohay!
जवाब देंहटाएंतलवारो को लहराने दो
जवाब देंहटाएंतीरों को चल जाने दो
प्रेम उलहाना शिकवे बंद करो
अब कलम को आग लगाने दो
यही तो बात है। जनता की कमजोर यादाश्त ही तो नेताओं की ताकत है।
जवाब देंहटाएंजनता की होती बहुत, याददास्त कमजोर।
जवाब देंहटाएंबिसरा देती है सदा, कपटी-कामी-चोर।6।
सही कहा शास्त्री जी ...हम जनता होती ही बेवकूफ है
बहुत सटीक शाश्त्री जी, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
right sir 2the point sadhuwad
जवाब देंहटाएंतीखा कटाक्श.
जवाब देंहटाएंवर्तमान की समग्र सामाजिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंयथार्थ का चित्रण और सटीक व्यंग है इन उम्दा दोहों में.
जवाब देंहटाएंमिल जाएगी वेळ भुलक्कड़ कहलाऊंगा
जवाब देंहटाएंतमाम -उम्र बैठ माल हजम कर जाऊंगा!
काहे ताऊ "मयंक" तू चाहे जितना लिख ले
मक्कारों का राज है, तू बस इतना समझ ले
nice creation sir ji!
हर तरफ लूट मची है...लूट सके तो लूट...अंत काल जब आएगा...प्राण जायेंगे छूट...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जी!
जवाब देंहटाएंकभी हमारे ब्लाग पर भी उच्चारण करो जी।