कोई ख्याल नहीं है मन में! पंछी उड़ता नील गगन में!! ना चिट्ठी है, ना परवाना, मंजिल है ना कोई ठिकाना, मुरझाए हैं फूल चमन में! पंछी उड़ता नील गगन में!! बिछुड़ गया नदियों का संगम, उजड़ गया हैं दिल का उपवन, धरा नहीं है कुछ जीवन में! पंछी उड़ता नील गगन में!! मार-काट है बस्ती-बस्ती, जान हो गई कितनी सस्ती, मौत घूमती घर-आँगन में! पंछी उड़ता नील गगन में!! खोज रहा हूँ मैं वो सागर, जहाँ प्रीत की भर लूँ गागर, गन्ध भरी हो जहाँ सुमन में! पंछी उड़ता नील गगन में!! |
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शनिवार, 30 जुलाई 2011
“पंछी उड़ता नील गगन में” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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मार-काट है बस्ती-बस्ती,
जवाब देंहटाएंजान हो गई कितनी सस्ती,
मौत घूमती घर-आँगन में!
पंछी उड़ता नील गगन में!!
बहुत सुन्दर...सच्ची तस्वीर
bhaut hi sunder...
जवाब देंहटाएंवाह. बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंआज तो बहुत उदासी छायी है।
जवाब देंहटाएंआपकी रचना आज तेताला पर भी है ज़रा इधर भी नज़र घुमाइये
http://tetalaa.blogspot.com/
खोज रहा हूँ मैं वो सागर,
जवाब देंहटाएंजहाँ प्रीत की भर लूँ गागर,
गन्ध भरी हो जहाँ सुमन में!
पंछी उड़ता नील गगन में!!
udass rachna....phir bhi bahut khub...
padhna accha laga....aabhar
udas aur akela panchhi...
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna...
कवि तो हर जगह पहुंच ही जायेंगे, देखिये नील गगन तक छलांग लगा दी..
जवाब देंहटाएंbahut pyari kavita.aap ke saath hum bhi neel gagan me udne lage.ati sunder.
जवाब देंहटाएंअहा, बड़ी सुन्दर कविता, पंछी की तरह उन्मुक्त।
जवाब देंहटाएंबिछुड़ गया नदियों का संगम,
जवाब देंहटाएंउजड़ गया हैं दिल का उपवन,
dil ka dard hai
बिछुड़ गया नदियों का संगम,
जवाब देंहटाएंउजड़ गया हैं दिल का उपवन,
धरा नहीं है कुछ जीवन में!
पंछी उड़ता नील गगन में!!...
Very emotional creation !
.
bahut sundar kavita...
जवाब देंहटाएंbhaut hi khubsurat rachna....
जवाब देंहटाएंबधाई
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी |
नील-गगन में
उड़ते मनहर पक्षी ||
dr,saheb bahut hi umada rachana thanx
जवाब देंहटाएंसुंदर, सरस गीत।
जवाब देंहटाएंमार-काट है बस्ती-बस्ती,
जवाब देंहटाएंजान हो गई कितनी सस्ती,
मौत घूमती घर-आँगन में!
सरल सपाट शब्दों में अपनी बात कहने का हुनर आप में मिलता है , जो शुखद लगता है , शुक्रिया सर ...
खोज रहा हूँ मैं वो सागर,
जवाब देंहटाएंजहाँ प्रीत की भर लूँ गागर,
गन्ध भरी हो जहाँ सुमन में!
पंछी उड़ता नील गगन में!!
बहुत सुन्दर रचना। बधाई।
खोज रहा हूँ मैं वो सागर,
जवाब देंहटाएंजहाँ प्रीत की भर लूँ गागर,
गन्ध भरी हो जहाँ सुमन में!
पंछी उड़ता नील गगन में!!
सुंदर गीत ने भावविभोर कर दिया. सरल शब्दों में रची बेहद गंभीर रचना. आभार.
khoobsoorat geet guru ji!
जवाब देंहटाएंdr.saheb rachana unmukat dil se nikali lagi hai.sadhuwad.jaishree krishan.hardik badhayi
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