मुश्किल है पुस्तक छपवाना। रिश्ते रखना बहुत सरल है, मगर कठिन है उन्हें निभाना।। मैदानों में रहने वाले, ऊँचे पर्वत नहीं चढ़ेंगे। उपवन में मस्ताने वाले, बीहड़ वन में नहीं बढ़ेंगे। कलियाँ-सुमन मसलने वाले नहीं जानते पौध उगाना। रिश्ते रखना बहुत सरल है, मगर कठिन है उन्हें निभाना।। लिखने वाले बहुत पड़े हैं, है अकाल पढ़ने वालों का। ढोल पीटने वाले सब हैं, है अकाल मढ़ने वालों का। तू-तू, मैं-मैं के घर में घुस, बहुत कठिन उलझन सुलझाना। रिश्ते रखना बहुत सरल है, मगर कठिन है उन्हें निभाना।। कलयुग की कमजोरी है ये, कंस बहुत हैं श्याम नहीं है। लंका में सब बावन गज के, लेकिन कोई राम नहीं है। कैसे बुने कबीर चदरिया, उलझ गया है ताना-बाना। रिश्ते रखना बहुत सरल है, मगर कठिन है उन्हें निभाना।। रक्षा करते, चोर-उचक्के, आन-बान और शान नहीं है। वानर सेना में अब कोई, हनूमान बलवान नहीं है। छीना-झपटी, मारा-मारी, सस्ता जीवन महँगा खाना। रिश्ते रखना बहुत सरल है, मगर कठिन है उन्हें निभाना।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शनिवार, 19 मई 2012
"उलझ गया है ताना-बाना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
कलियाँ-सुमन मसलने वाले
जवाब देंहटाएंनहीं जानते पौध उगाना।
रिश्ते रखना बहुत सरल है,
मगर कठिन है उन्हें निभाना।।
बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
rishta karna bahot kathin hai.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सच-
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी ||
लिखने वाले बहुत पड़े हैं,है अकाल पढ़ने वालों का।
जवाब देंहटाएं....यह तो यूनिवर्सल फैक्ट है!...जैसे कि सुनने वालों की कमी है, बोलने वालों की कमी नहीं है!
तारीफ के लिए शब्द कम पड़ जायेंगे इस रचना के लिए ....लाजबाब
जवाब देंहटाएंलाज़वाब ! निशब्द कर दिया आपकी रचना ने...आभार
जवाब देंहटाएंसमाज का सत्य व्यक्त करती हुयी कविता..
जवाब देंहटाएंरिश्ते रखना बहुत सरल है,
जवाब देंहटाएंमगर कठिन है उन्हें निभाना।।
यह रचना वाकई लाजबाव है ...
बधाई भाई जी !
तू-तू, मैं-मैं के घर में घुस,
जवाब देंहटाएंबहुत कठिन उलझन सुलझाना।
रिश्ते रखना बहुत सरल है,
मगर कठिन है उन्हें निभाना।।
एक गीत में इतने तेवर मगर पिरोना नहीं सरल ,है ,
सारा गीत उल्लेख्य हर पद -पदांश ,गीतांश विशिष्ठ .बेहतरीन गीत .प्रेशनियता से
भीगा हुआ ,कहीं विरोधी तेवर कहीं विश्लेषण परक कहीं स्वीकरण में झुकने वाले जीवन के स्पंदन में .
क्या बात है सर ! आज अंदाज कुछ बदला -२ सा है ,मानसून अभी आने वाला है ,प्रवाह वेगमयी हो गया ........मुखर समीचीन अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें /
जवाब देंहटाएंवाह सही अर्थो में लिखी गई कविता ...बहुत सरल और सच्ची ..
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी, एक एक बात १०० टंच खरी.... रिश्ते आजकल यूँ टूट रहे हैं जैसे कांच के खिलौने....
जवाब देंहटाएंरिश्ते रखना सरल है , मुश्किल है उन्हें निभाना !
जवाब देंहटाएंसत्य वचन !
रिश्ते रखना बहुत सरल है,मगर कठिन है उन्हें निभाना।।
जवाब देंहटाएंsab kuchh to kah diya aapne:)