पगड़ी पर जो दाग लगाते, बे-गैरत सरदार हो गये।।
असरदार हो गये किनारे, फिरते दर-दर, मारे-मारे,
खुद्दारी की माला जपते, माली अब गद्दार हो गये।।
मन्त्री-सन्त्री और विधायक, खुलेआम कानून तोड़ते,
दूध-दही की रखवाली में, बिल्ले पहरेदार हो गये।
नैतिक और अनैतिकता से, आय-आय कैसे भी आये,
घोटालों में लिप्त धुरन्धर, सत्ता के हकदार हो गये।
अपने होठों को सी लेना, जनता की ये लाचारी है,
रोटी-रोजी के बदले में, भाषण लच्छेदार हो गये।
कहीं कीच में कमल खिला है, कहीं हाथ को राज मिला है,
मौन हो गये कर्म यहाँ पर, मुखरित अब अधिकार हो गये।
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रविवार, 23 सितंबर 2012
"माली अब गद्दार हो गये" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सही ब्यान किए हैं हालात आज के
जवाब देंहटाएंवाह शास्त्री जी वाह ! दिल को असीम संतुष्ठी मिली, आभार !
जवाब देंहटाएंआज के हालात की बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंsundar samsamyik rachna ....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ||
आज जिस हालात से आम लोग गुजर रहे है उसका पुर जोर विरोध अब होना चाहिए | समय पर तीखा प्रहार करती पोस्ट |
जवाब देंहटाएंआपकी कलम को नमन करने का मन कर रहा है. जिस तरह से अपने सत्ता के काबिज और देश के हालात को बयान कर दिया है और वह भी इतनी सुंदर पद्य रूप में , सब के वश की बात नहीं है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात कही है.
आज के हालात के बारे में सटीक वर्णन किया है आपने !!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी .मुबारक कबूले अपनी इस रचना पर !!!!!
जवाब देंहटाएंआपकी इसी शैली का मैं कायल हूं। आज की विषम परिस्थिति पर कटाक्ष करती यह रचना मन के बहुत गहरे पैठ गई और अनायास इसे गाने लगा।
जवाब देंहटाएंआज के हालात पर सही विवरण...बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 24-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1012 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
जवाब देंहटाएं"माली अब गद्दार हो गये" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रिश्ते-नाते, आपसदारी, कलयुग में व्यापार हो गये।
पगड़ी पर जो दाग लगाते, बे-गैरत सरदार हो गये।।
बहुत युगीन व्यंग्य केंद्र के काम काज पे .जीते रहो शास्त्री जी .आबाद रहो .असरदार(अ -सरदार ) रहो .
waah... so true !
जवाब देंहटाएंthis is utterly beautiful...and truth
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंमाली अब गद्दार हो गये
माली नहीं रोपते अब पौंधे
काट पीट पर लगे हुऎ हैं
माली अब तलवार हो गये !
बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
वाह ... बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी,
जवाब देंहटाएं"बिल्ले पहरेदार हो गए"--इस जुमले पर झूम रहा हूँ ! तीक्ष्ण कटाक्ष पर साधुवाद !
सादर--आ.