मेरी गैया बड़ी निराली,
सीधी-सादी, भोली-भाली।
सुबह हुई काली रम्भाई,
मेरा दूध निकालो भाई।
हरी घास खाने को लाना,
उसमें भूसा नही मिलाना।
उसका बछड़ा बड़ा सलोना,
वह प्यारा सा एक खिलौना।
मैं जब गाय दूहने जाता,
वह अम्मा कहकर चिल्लाता।
सारा दूध नही दुह लेना,
मुझको भी कुछ पीने देना।
थोड़ा ही ले जाना भैया,
सीधी-सादी मेरी मैया।
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शनिवार, 27 अप्रैल 2013
"मेरी गैया भोली-भाली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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घर मैं एक गौ पाल के पून बहुत ही पाएँ ।
जवाब देंहटाएंहरिद अछद धन डारि के दूध दधि खीर खाएँ ॥
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा बालगीत....आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंगाय भोली है इसीलिये हम सबको प्यारी है: भोलापन हमारा मूल है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (28-04-2013) के चर्चा मंच 1228 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंगाय पालने का आनन्द हमने भी उठाया है, आपकी कविता बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा बालगीत............
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बाल रचना पसंद आई !!!
जवाब देंहटाएंRecent post: तुम्हारा चेहरा ,
बहुत ही सुन्दर प्यारा सा बाल कविता,गोरक्षा हमारा कर्तव्य.
जवाब देंहटाएंअरे वाह...ये तो बड़ी प्यारी गैया है..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गीत है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बाल रचना..
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह .....खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारा बालगीत...सुंदर....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता.... आभार.
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर