वफा और प्यार की बातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं। तपन के बाद बरसातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं। मिलन होता जहाँ बिछड़ी हुई, कुछ आत्माओं का, चमकती वो हसीं रातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं।। गुलो-गुलशन की बरबादी, हमें अच्छी नहीं लगती। वतन की बढ़ती आबादी, हमें अच्छी नहीं लगती। जुल्म का सामना करने को, जिसको ढाल माना था- सितम करती वही खादी, हमें अच्छी नहीं लगती।। |
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शुक्रवार, 26 जुलाई 2013
"अच्छी नहीं लगतीं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सही कहा आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सटीक मुक्तक-
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश-
आभार गुरु जी-
वाह एक दम सटीक बात
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएं'सपने देखती आँखें किसे अच्छी नहीं लगती...
हक़ीक़त में झुलसी वीरानियाँ... हमें अच्छी नहीं लगती...'
~सादर!!!
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंवाह मयंक जी । बढ़िया मुक्तक हैं । आप तो हर विधा के उस्ताद लगते हैं । मेरी बधाई लें ।
जवाब देंहटाएंsahi .sundar prastuti .
जवाब देंहटाएंगुलो-गुलशन की बरबादी, हमें अच्छी नहीं लगती।
जवाब देंहटाएंवतन की बढ़ती आबादी, हमें अच्छी नहीं लगती।
जुल्म का सामना करने को, जिसको ढाल माना था-
सितम करती वही खादी, हमें अच्छी नहीं लगती।।
बहुत अच्छे !क्या बात !
सुन्दर पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया..सुन्दर पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंवफा और प्यार की बातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं।
जवाब देंहटाएंतपन के बाद बरसातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं। .....
.....
जुल्म का सामना करने को, जिसको ढाल माना था-
सितम करती वही खादी, हमें अच्छी नहीं लगती।।
...
बहुत अच्छी/सच्ची पंक्तिया हैं, बधाई!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंlatest post हमारे नेताजी
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