तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।।
दया उन्हीं पर दिखलाओ, जो दिल से माफी माँगें,
कुटिल, कामियों को फाँसी पर जल्दी से हम टाँगें,
ऐसा बने विधान देश का, जिसमें हो खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।।
ऊँचा पर्वत-गहरा सागर, हमको ये बतलाता है,
अटल रहो-गम्भीर बनो, ये शिक्षा देता जाता है,
डर कर शीश झुकाना ही तो, खो देता है खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।।
तुम प्रताप के वंशज हो, उनके जैसा बन जाओ तो,
कायरता को छोड़, पराक्रम जीवन में अपनाओ तो,
याद करो निज आन-बान को, आ जायेगी खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।।
कंकड़ का उत्तर हमको, पत्थर से देना होगा,
नीति यही कहती, दुश्मन से लोहा लेना होगा,
निर्भय होकर दिखलानी ही होगी अपनी खुद्दारी।
तभी सलामत रह पायेगी, खुद्दारों की खुद्दारी।।
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रविवार, 11 अगस्त 2013
"दुश्मन से लोहा लेना होगा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर,मगर ये करेगा कौन ? सभी एक ही थाली के ….
जवाब देंहटाएंतुम प्रताप के वंशज हो, उनके जैसा बन जाओ तो,
जवाब देंहटाएंकायरता को छोड़, पराक्रम जीवन में अपनाओ तो,...
सुन्दर ओज़स्वी गीत ... आज वैसे भी ऐसा समय है ... काश समय धारा मिएँ ये बदलाव आए ...
नमस्कार शास्त्री जी ...
bahut sundar rachna sir
जवाब देंहटाएंकब तक खामोश सहेंगे हम...खुद्दारी है तो लड़ कर सामना करेंगे हर चुनौती का...
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी और ओजस्वी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंपर
जो खुद हो गया हो मक्कार
क्या होना है उसको ललकार !
भाई साहब ! हम आप के साथ हैं आप के समर्थन के रूप में | सच है
जवाब देंहटाएंदुष्ट के साथ 'जैसे को तैसा ' |
वाह जी सुंदर
जवाब देंहटाएं'जैसे को तैसा ' बहुत सुन्दर देशभक्ति से प्रेरित रचना।
जवाब देंहटाएंइतिहास प्रश्न पूछेगा।
जवाब देंहटाएं