यातनाएँ झेलीं लेकिन,
भारत माँ को आजाद किया।
स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर,
जीवन का बलिदान दिया।
चाटुकार सत्ता पर बैठे,
भूल गये बलिदानों को।
आज शहीदों के वंशज तो,
झेल रहे अपमानों को।
जो नाखूनों को कटवाते,
रत्न उन्हें मिल जाते हैं।
मिटे देश की खातिर जो भी,
वो गुमनाम कहाते हैं।
बिस्मिल-राज, भगत-सुख जैसे,
सूली पर चढ़ जाते हैं।
लेकिन अमर शहीदों की वो,
पदवी को नहीं पाते हैं।
चीख-चीख इतिहास सुनाता,
जिनके अमर तरानों को।
चाटुकार सत्ता के मद में,
भूल गये बलिदानों को।
अब भी बापू तेरे बन्दर,
अन्धे-गूँगे-बहरे हैं।
इसीलिए तो अब तक ये,
सत्ता-शासन में ठहरे हैं।
आने वाले निर्वाचन में,
इनको सबक सिखाना है।
अमर शहीदों को शहीद का,
पद हमको दिलवाना है।
|
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शनिवार, 17 अगस्त 2013
"भारत माँ को आजाद किया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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अब भी बापू तेरे बन्दर,
जवाब देंहटाएंअन्धे-गूँगे-बहरे हैं।
***
सत्य वचन!
बहुत सुन्दर कविता। माँ शारदे के चित्र के साथ आपका ब्लॉग बहुत सुन्दर लगने लगा है। यदि सूचनायें आदि किनारे पर या नीचे आ जाती तो पठनीय सामग्री तुरन्त ही दिख जातीं, तब और अच्छा लगता।
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग समूह के शुभारंभ पर आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {सोमवार} (19-08-2013) को हिंदी ब्लॉग समूह
जवाब देंहटाएंपर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
सुंदर और ओजस्वी रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना !
हटाएंस्वार्थी तत्वों को हटाना ही पड़ेगा.
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachana...
जवाब देंहटाएंवाह,बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएं