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गुरुवार, 22 अगस्त 2013
"तेरा उच्चारण थम जाये" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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क्या हुआ शास्त्री साहब. चलिये इसी बहाने कम से कम एक और अच्छा गीत तो पढ़ने को मिला.
जवाब देंहटाएंलगता है शास्त्री जी को वो बम्बईया एडवोकेट साहब याद आ गए :)
हटाएंशुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए।
जवाब देंहटाएंपका-पकाया खाने वाले, तुझे भयंकर रोग सताये।
इस जीवन में कभी न तुझको, कविता-छन्द बनाना आये।।
गीत चुराने वाले पामर तेरी अम्मा खैर मनाये
एच आई वी तुझको डस जाए।
:)
जवाब देंहटाएंसोलह आने सच |
जवाब देंहटाएंबढ़िया है आदरणीय-
जवाब देंहटाएंआभार-
सत्य और सटीक.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ठीक श्राप दिया है..
जवाब देंहटाएंबहुत दिल से श्राप दिया है आपने...काश इसे वो पढ़ पाए!! आजकल इस तरह की चोरी खूब चल निकली हैं! हमने कहीं लिखा भी था:
जवाब देंहटाएंनकलचियों की दौड़
अब फेसबुक/ब्लॉग पर भी चल रही है....
परन्तु जनाब,
असल तो असल है,
उसी की फसल है,
बाकी तो नकलची हैं,
या फिर मात्र एक नक़ल है...
चलिए आपका गीत मिला पढ़ने को, खूब आनन्द आया!
सादर,
सारिका मुकेश