रूई जैसा कोमल-कोमल,
लगता कितना प्यारा है।
बड़े-बड़े कानों वाला,
सुन्दर खरगोश हमारा है।।
बहुत प्यार से मैं इसको,
गोदी में बैठाता हूँ।
बागीचे की हरी घास,
मैं इसको रोज खिलाता हूँ।।
मस्ती में भरकर यह
लम्बी-लम्बी दौड़ लगाता है।
उछल-कूद करता-करता,
जब थोड़ा सा थक जाता है।।
तब यह उपवन की झाड़ी में,
छिप कर कुछ सुस्ताता है।
ताज़ादम हो करके ही,
मेरे आँगन में आता है।।
नित्य-नियम से सुबह-सवेरे,
यह घूमने जाता है।
जल्दी उठने की यह प्राणी,
सीख हमें दे जाता है।।
|
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रविवार, 25 अगस्त 2013
"खरगोश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बढ़िया बाल रचना-
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी-
वाह !!! बहुत सुंदर बाल रचना,,,आभार
जवाब देंहटाएंRECENT POST : पाँच( दोहे )
वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत अच्छी लग रही है ये रचना मेरे बच्चों को.
जवाब देंहटाएंप्यारा प्यारा सुन्दर सा खरगोश
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बाल रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
अर्थ और पशुप्रेम से संसिक्त बढ़िया रचना। सुन्दर सरल सीख देती रचना।
जवाब देंहटाएं--
जवाब देंहटाएं"खरगोश"
रूई जैसा कोमल-कोमल,
लगता कितना प्यारा है।
बड़े-बड़े कानों वाला,
सुन्दर खरगोश हमारा है।।
उच्चारण
waah sundar tan aur sundar man wala khargosh ..sundar geet
जवाब देंहटाएंक्या बात वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार २७ /८ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है।
जवाब देंहटाएंकितनी प्यारी बाल-कविता !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बाल कविता
जवाब देंहटाएं