धार लबादा सन्त का, करते पापाचार।
कश्ती को अब धर्म की, कौन करेगा पार।।
पहले भी थे धरा पर, थोड़े-बहुत असन्त।
अब बहुतायत में हुए, भोगी और कुसन्त।।
कामी. क्रोधी-लालची, करते कारोबार।
राम नाम की आड़ में, दौलत का व्यापार।।
उपवन के माली स्वयं, कली मसलते आज।
आशाएँ धूमिल हुईं, कुंठित हुआ समाज।।
आशाओं का हनन जब, करते आशाराम।
आशा के संचार का, कौन करेगा काम।।
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रविवार, 1 सितंबर 2013
"दोहे-कुंठित हुआ समाज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कामी. क्रोधी - लालची, करते कारोबार।
जवाब देंहटाएंराम नाम की आड़ में,दौलत का व्यापार।।
बहुत बढ़िया सटीक दोहे ,,,
RECENT POST : फूल बिछा न सको
बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसामयिक संप्रेषण
जवाब देंहटाएंआज का सच...
जवाब देंहटाएं
हटाएंआप अभी तक हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {साप्ताहिक चर्चामंच} की चर्चा हम-भी-जिद-के-पक्के-है -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-002 मे शामिल नही हुए क्या.... कृपया पधारें, हम आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आगर आपको चर्चा पसंद आये तो इस साइट में शामिल हों कर आपना योगदान देना ना भूलें। सादर ....ललित चाहार
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जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर और सामायिक दोहे
सादर प्रणाम आदरणीय ''मयंक'' सर जी।
कितनी खूबसूरती से भूतकाल से वर्तमान काल
तक के प्रक्रिया को अंजाम दिया आपने।
वाह वाह
सादर
इस कुण्ठा पर काबू पाना ही होगा...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएं---
आप अभी तक हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {साप्ताहिक चर्चामंच} की चर्चा हम-भी-जिद-के-पक्के-है -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-002 मे शामिल नही हुए क्या.... कृपया पधारें, हम आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आगर आपको चर्चा पसंद आये तो इस साइट में शामिल हों कर आपना योगदान देना ना भूलें। सादर ....ललित चाहार
मित्र!सत्य-कथन हेतु साधुवाद! मैं कल लिखे गे एक 'दोहा-गीत' द्वारा आप का अनुगमन कर
जवाब देंहटाएंक्रितारः होऊंगा !!
धार लबादा सन्त का, करते पापाचार।
जवाब देंहटाएंकश्ती को अब धर्म की, कौन करेगा पार।।
पहले भी थे धरा पर, थोड़े-बहुत असन्त।
अब बहुतायत में हुए, भोगी और कुसन्त।।
कामी. क्रोधी-लालची, करते कारोबार।
राम नाम की आड़ में, दौलत का व्यापार।।
उपवन के माली स्वयं, कली मसलते आज।
आशाएँ धूमिल हुईं, कुंठित हुआ समाज।।
आशाओं का हनन जब, करते आशाराम।
आशा के संचार का, कौन करेगा काम।।
---------रूप मयंक शाष्त्री जी उच्चारण पर
जन जन के उदगार और आक्रोश और मलाल को वयक्त किया है आपने इस दोहावली में।
बहुत अच्छी रचना ! उत्कृष्ट !
जवाब देंहटाएंहिंदी
फोरम एग्रीगेटर पर करिए अपने ब्लॉग का प्रचार !
कामी. क्रोधी-लालची, करते कारोबार।
जवाब देंहटाएंराम नाम की आड़ में, दौलत का व्यापार।।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
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