प्रजातन्त्र में प्रजा ही, चुनती है सरकार।
पाँच साल के बाद में, मिलता यह अधिकार।।
उसको अपना वोट दो, जो हो पानीदार।
संसद में पहुँचे नहीं, कोई भी मक्कार।।
अगर देश का चाहते, करना कुछ उत्थान।
सोच-समझकर कीजिए, अपने मत का दान।।
हथकण्डे हर तरह के, अपनायेंगे लोग।
लेकिन चुनना उन्हीं को, जो शासन के योग।।
भिक्षुक बन कर आयेंगे, फिर से बेईमान।
शासन-सत्ता पाय कर, बन जाते धनवान।।
लुभावने नारे लगा, बोलेंगे मृदु बोल।
मक्कारों की बात पर, मत जाना तुम डोल।।
अपने मत की शक्ति को, अब तो लो पहचान।
जनता के है हाथ में, आँसू औ’ मुस्कान।।
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बुधवार, 25 सितंबर 2013
"दोहे-मत का दान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अपने मत की शक्ति को, अब तो लो पहचान।
जवाब देंहटाएंजनता के है हाथ में, आँसू औ’ मुस्कान।
।बहुत सुंदर रचना !
नई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
लोकतन्त्र की शक्ति का सभी उपयोग करें।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार गुरुदेव-
सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंआप की ये रचना आने वाले शुकरवार यानी 27 सितंबर 2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... ताकि आप की ये रचना अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है... आप इस हलचल में शामिल अन्य रचनाओं पर भी अपनी दृष्टि डालें...इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है...
उजाले उनकी यादों के पर आना... इस ब्लौग पर आप हर रोज कालजयी रचनाएं पढेंगे... आप भी इस ब्लौग का अनुसरण करना।
आप सब की कविताएं कविता मंच पर आमंत्रित है।
हम आज भूल रहे हैं अपनी संस्कृति सभ्यता व अपना गौरवमयी इतिहास आप ही लिखिये हमारा अतीत के माध्यम से। ध्यान रहे रचना में किसी धर्म पर कटाक्ष नही होना चाहिये।
इस के लिये आप को मात्रkuldeepsingpinku@gmail.com पर मिल भेजकर निमंत्रण लिंक प्राप्त करना है।
मन का मंथन [मेरे विचारों का दर्पण]
बहुत सुंदर रचना ........
जवाब देंहटाएंलोकतंत्र का मंत्र यही अब कोई नहीं प्रजा हो।
जवाब देंहटाएंकोई राजा नहीं यहाँ जिसका दरबार सजा हो॥
अब तो जनता मालिक है वोटों से हुक्म सुनाये।
पाँच वर्ष में घुटने के बल उनके सेवक आयें॥
ना मालिक नौकर का रिश्ता राजा और प्रजा का।
संविधान में प्राविधान है सबको एक सजा का॥
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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