![]() आँखों के मौन निमन्त्रण से,
बिन डोर खिचें सब आते हैं।
मुद्दत से टूटे रिश्ते भी,
सम्बन्धों में बंध जाते हैं।।
इनके बिन बात अधूरी है,
नजदीकी में भी दूरी है,
दुनिया दारी में पड़ करके,
बतियाना बहुत जरूरी है,
मकड़ी के नाजुक जालों में,
बलवान सिंह फंद जाते हैं।
मुद्दत से टूटे रिश्ते भी,
सम्बन्धों में बंध जाते हैं।।
पशु-पक्षी और संगी-साथी,
शब्दों से मन को भरमाते,
तीखे शब्दों से मीत सभी,
पल भर में दुश्मन बन जाते,
पहले तोलो, फिर कुछ बोलो,
स्वर मधुर छन्द बन जाते हैं।
मुद्दत से टूटे रिश्ते भी,
सम्बन्धों में बंध जाते हैं।।
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सोमवार, 28 जुलाई 2014
"मौन निमन्त्रण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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पल भर में दुश्मन बन जाते,
जवाब देंहटाएंपहले तोलो, फिर कुछ बोलो,
स्वर मधुर छन्द बन जाते हैं।
मुद्दत से टूटे रिश्ते भी,
सम्बन्धों में बंध जाते हैं।।
..बहुत सही ...
आँखों के मौन निमन्त्रण से,
जवाब देंहटाएंबिन डोर खिचें सब आते हैं।
मुद्दत से टूटे रिश्ते भी,
सम्बन्धों में बंध जाते हैं।।
एक अनदेखा डोर जो बहुत से रिश्तों
को बांधे रखती है
सुन्दर रचना
सादर !
सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...