खुद को खुदा समझ रहा, इंसान आज तो
फिरकों में है सिमट गया. जहान आज तो
कैसे सुधार हो भला, अपने समाज का
कौड़ी के मोल बिक रहा, ईमान आज तो
भरकर लिबास आ गये, शेरों का भेड़िए
सन्तों के भेष में छिपे, हैवान आज तो
जिसको नहीं है इल्म, वो
इलहाम बाँटता
उड़ता बग़ैर पंख के, नादान
आज तो
बस्ती में खूब हो गयी, कौओं
की मौज़ है
चिड़िया का घोंसला हुआ, सुनसान आज तो
ज़न्नत के ख़्वाब को दिखा
इलहाम बेचते
चलने लगी अधर्म की, दुकान आज
तो
सन्तों को सुरक्षा की
ज़रूरत है किसलिए
बौना हुआ समाज का, विधान आज
तो
मिलते हैं सभी ऐश के सामान
जेल में
दुष्टो को मिल गये यहाँ, भगवान आज तो
घर में खुदा के हो रहे, हैवानियत के जश्न
मुश्किल हुई है ‘रूप’ की पहचान आज तो
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गुरुवार, 26 सितंबर 2019
ग़ज़ल "ईमान आज तो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (28-09-2019) को " आज जन्मदिन पर भगत के " (चर्चा अंक- 3472) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सुंदर और यथार्थ रचना ,सादर नमन
जवाब देंहटाएं