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देशभक्ति के कर्म का, समझ लीजिए मर्म।
रण में जाकर जूझना, सैनिक का है धर्म।।
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बैरी पग-पग बदलता, गिरगिट जैसे रंग।
रण में बुद्धि-विवेक से, जाकर लड़ना जंग।।
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मन में रक्खो हौसला, खो मत देना होश।
रण में अन्तिम साँस तक, रखना होगा जोश।।
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प्यार-जंग के खेल में, होता सब कुछ माफ।
पथ में जो कंटक मिलें, उनको करना साफ।।
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काम करो दिन में सदा, रातों को विश्राम।
संघर्षों से जीत लो, जीवन का संग्राम।।
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मिलते हैं रण भूमि में, पग-पग पर आघात।
तारतम्य से ही बनें, बिगड़ी सारी बात।।
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दुर्घटनाओं को सदा, देना पूर्ण विराम।
हँसी-खेल होता नहीं, जीवन का संग्राम।।
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शनिवार, 13 जून 2020
दोहे "रण में लड़ना जंग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ' मयंक')
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बहुत सुंदर चिन्तनपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(-१४- 0६-२०२०) को शब्द-सृजन- २५ 'रण ' (चर्चा अंक-३७३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
अत्यंत सुन्दर एवं सार्थक दोहे ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार लिए सार्थक सृजन ।
जवाब देंहटाएंवाह!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक दोहे...।
ओजस्विता से परिपूर्ण प्रेरक सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर नमन सर।