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गुरुओं की तो हो गयी, नवयुग में ये
रीत।
शिष्यों से नफरत करें, शिष्याओं से
प्रीत।।
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मतलब के हैं अब गुरू, मतलब के ही शिष्य।
दोनों इसी जुगाड़ में, कैसे बने भविष्य।।
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सम्बन्धों की आज तो, हालत बड़ी विचित्र।
नहीं रहे गुरु-शिष्य अब, पावन और पवित्र।।
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साथ बैठ गुरु-शिष्य जब, छलकाते हों जाम।
तब नवयुग की पौध का, क्या होगा अंजाम।।
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बाजारों में बिक रहा, अब गुरुओं का ज्ञान।
हर ऊँची दूकान का, फीका है पकवान।।
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सुध-बुध तन की है नहीं, हाल हुआ
बेहाल।
राधा पागल हो रही, मिला नहीं गोपाल।।
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राधा रचती जा रही, उलटे-सीधे छन्द।
खोज रही गोपाल को, करके आँखें
बन्द।।
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मंगलवार, 9 जून 2020
दोहे "शिष्याओं से प्रीत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर व् यथार्थपूर्ण दोहे
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहे।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11.6.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3729 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
वाह! बहुत सुंदर और सही!
जवाब देंहटाएंसुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएं