--
आहत वृक्ष कदम्ब का, तकता है आकाश।
अपनी शीतल छाँव में, बंशी रहा तलाश।।
--
माटी जैसी हो वही, देता है आकार।
कितने श्रम पात्र को, गढ़ता रोज कुम्हार।।
--
शब्दों में अपने नहीं, करता कभी कमाल।
कच्ची माटी जब मिले, दूँ साँचों में ढाल।।
--
चिन्तन-मन्थन के लिए, मिलता कच्चा माल।
रोज-रोज लिख दीजिए, सच्चा-सच्चा हाल।।
--
ठोकर खा कर सभी को, मिल जाती है राह।
लेकिन होनी चाहिए, मन में सच्ची चाह।।
--
झंझावातों में सभी, बने हुए हैं बैल।
मंजिल तब कैसे मिले, जब मन में हो मैल।।
--
कंकड़-काँटों से भरी, प्यार-प्रीत की राह।
बन जाती आसान तब, जब मन में हो चाह।।
--
लोकतन्त्र में न्याय से, अक्सर होती भूल।
कौआ मोती निगलता, हंस फाँकते धूल।।
--
जिनको प्यार-दुलार से, पाल रहे हों शूल।
सबके मन को मोहते, उपवन के वो फूल।।
--
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 9 जून 2020
दोहे "जब मन में हो चाह" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
आपके दोहों का जवाब नहीं ... हर बात पे दोहा हक़ सकते हैं आप ... वाह प्रणाम शास्त्री जी ...
जवाब देंहटाएंलोकतन्त्र में न्याय से, अक्सर होती भूल।
जवाब देंहटाएंकौआ मोती निगलता, हंस फाँकते धूल।।
बहुत सही।
बहुत खूबसूरत सत्य को दर्शाती है
जवाब देंहटाएंझंझावातों में सभी, बने हुए हैं बैल।
जवाब देंहटाएंमंजिल तब कैसे मिले, जब मन में हो मैल।।
Full of meaning and intent rhythm and all that makes poetry sublime.
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
It is not unknown and is : veeruji05.blogspot.com ; veerujialami.blogspot.com; veerujan.blogspot.com; veerubhai1947.blogspot.com;
जवाब देंहटाएंझंझावातों में सभी, बने हुए हैं बैल।
मंजिल तब कैसे मिले, जब मन में हो मैल।।
Full of meaning and intent rhythm and all that makes poetry sublime.
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
Beloved reverend shstriji i am thankful to you for giving space to my write ups at kabirabakhadabazarmein.blogspot.com , due to burning of cookies in my computer i am not able to post comments .This computer belongs to my grandson and hence am able to post as unknown .Regards i am sharing all yr valueable posts at FB and twitter.com
जवाब देंहटाएंpl communicate yr contact numbers at veerubhai1947@gmail.com ; i am at 85 88 98 7150
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन
जवाब देंहटाएंदेखन में छोटे लगें ,बात कहें गंभीर,
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी के दोहरे कहें समय की पीर .
बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन दोहे
जवाब देंहटाएंसुंदर नीति के दोहे ।
जवाब देंहटाएं--
जवाब देंहटाएंआहत वृक्ष कदम्ब का, तकता है आकाश।
अपनी शीतल छाँव में, बंशी रहा तलाश।।
--
माटी जैसी हो वही, देता है आकार।
कितने श्रम पात्र को, गढ़ता रोज कुम्हार।।
--
शब्दों में अपने नहीं, करता कभी कमाल।
कच्ची माटी जब मिले, दूँ साँचों में ढाल।।
--
चिन्तन-मन्थन के लिए, मिलता कच्चा माल।
रोज-रोज लिख दीजिए, सच्चा-सच्चा हाल।।
--
बेहतरीन दोहे शास्त्री जी नमस्कार