आया है उल्लास का, उत्तरायणी पर्व। झूम रहे आनन्द में, सुर-मानव-गन्धर्व।१। -- जल में डुबकी लगाकर, पावन करो शरीर। नदियों में बहता यहाँ, पावन निर्मल नीर।२। -- जीवन में उल्लास के, बहुत निराले ढंग। बलखाती आकाश में, उड़ती हुई पतंग।३। -- तिल के मोदक खाइए, देंगे शक्ति अपार। मौसम का मिष्ठान ये, हरता कष्ट-विकार।४। -- उत्तरायणी पर्व के, भिन्न-भिन्न हैं नाम। लेकर आता हर्ष ये, उत्सव ललित-ललाम।५। -- सूर्य रश्मियाँ आ गयीं, खिली गुनगुनी धूप। शस्य-श्यामला भूमि का, निखरेगा अब रूप।६। -- भुवनभास्कर भी नहीं, लेगा अब अवकाश। कुहरा सारा छँट गया, चमका भानुप्रकाश।७। -- आयेंगे अच्छे दिवस, जाड़े का बस अन्त। धीरे-धीरे चमन में, सजने लगा बसन्त।८। -- रजनी आलोकित हुई, खिला चाँद रमणीक। देखो अब आने लगे, युवा-युगल नज़दीक।९। -- पतझड़ के ही बाद में, होगा मृदुल बसन्त। नवपल्लव पा जायगा, बूढ़ा पीपल सन्त।१०। -- पौधों पर छाने लगा, कलियों का विन्यास। दस्तक देता द्वार पर, खड़ा हुआ मधुमास।११। -- गन्ना-गेहूँ लिए, मौसम ये अनुकूल। सरसों पर आने लगे, पीले-पीले फूल।१२। -- भँवरा गुन-गुन कर रहा, तितली करती नृत्य। खुश होकर करते सभी, अपने-अपने कृत्य।१३। -- आज सार्थक हो गयी, पूजा और नमाज। जीवित अब होने चला, जीवन में ऋतुराज।१४। -- |
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 15-01-2021) को "सूर्य रश्मियाँ आ गयीं, खिली गुनगुनी धूप"(चर्चा अंक- 3947) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
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"मीना भारद्वाज"
उत्सव का उल्लास जगाते बहुत सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं। सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंवन्दन
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे
सादर
कायनात करवट बदलने लगी है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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