tag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post3047519275498777565..comments2024-03-28T21:04:40.074+05:30Comments on उच्चारण: "कुण्डलिया छन्द और परिभाषा-2" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'http://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-25493577000366571682012-01-19T19:34:39.612+05:302012-01-19T19:34:39.612+05:30सही व स्पष्ट कहा नवीन जी.....
---वास्तव में ही कुन...सही व स्पष्ट कहा नवीन जी.....<br />---वास्तव में ही कुन्डलिया छंद...एक दोहा व एक रोला का मिश्र छंद है....रोला चार चरण वाला छन्द है ,११-१३, ११-१३..अन्त गुरु-गुरु । इसे सोरठा से भ्रमित नहीं होना चाहिये...<br /><br />---उप्रोक्त पोस्ट में उदाहरण में--रोला में मात्रायें तो सही २४ हैं परन्तु ११-१३ का संयोजन नहीं है...<br />---सही कहा आज कल -- प्रारम्भ का शब्द ही छन्द के अन्त में अवश्यमेव आये इसका पालन अनिवार्य नहीं हो रहा अपितु पांच्वी पन्क्ति से छटवीं पन्क्ति का तुकान्त किया जारहा है...हां लयवद्धता बनी रहनी चाहिये... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-17920884222851069032011-03-10T12:59:34.812+05:302011-03-10T12:59:34.812+05:30सब से पहले देरी से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ| और ...सब से पहले देरी से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ| और साधुवाद आप सभी का जो लुप्त होते छन्दों को पुनर्जीवन प्रदान करने में प्रयास रत हैं|<br /><br />कुण्डलिया को ले कर अलग अलग जगह पर अलग परिभाषाएं पढ़ने में आईं, तो मैने सोचा कि मैं भी अपने अर्जित ज्ञान और अनुभव को अन्य लोगों से बाँटने का प्रयास करता हूँ|<br /><br />कुण्डलिया छन्द को सब से ज़्यादा चर्चा में लिया जाता रहा है वो है प्रख्यात कवि 'गिरिधर' जी की कुण्डलिया| आइए उन की ही एक कुण्डलिया को पढ़ते हैं और उसी कुण्डलिया के ज़रिए इस छन्द के विधान को समझते हैं|<br /><br />साईं बैर न कीजियै; गुरु, पण्डित, कवि, यार|<br />२२ २१ १ २१२=१३/ ११ ११११ ११ २१=११ <br />बेटा, बनिता, पौरिया, यज्ञ करावन हार||<br />२२ ११२ २१२ = १३ / २१ १२११ २१ = ११<br />यज्ञ करावन हार, राज मंत्री जो होई|<br />२१ १२११ २१ = ११ / २१ २२ २ २२ = १३<br />जोगी, तपसी, बैद, आप कों तपें रसोई|<br />२२ ११२ २१ = ११ / २१ २ १२ १२२ = १३<br />कहँ गिरिधर कविराय, जुगन सों यों चल आई|<br />११ ११११ ११२१ =११ / १११ २ २ ११ २२ = १३<br />इन तेरह कों तरह, दिएं बन आवै साईं||<br />११ २११ २ १११=११/ १२ ११ २२ २२ = १३<br /><br />उपरोक्त कुण्डलिया को पढ़ कर प्रतीत होता है कि:<br />१. ये मात्रिक छन्द है|<br />२. पहली दो पंक्ति दोहा की हैं|<br />३. तीसरी से छठी पंक्ति रोला की है| दोहे के आख़िरी चरण का रोला का प्रथम चरण बनना अनिवार्य| रोला चार चरण का होता है|<br />४. यदि पाँचवी और छठी पंक्ति को हम रोला की जगह सोरठा समझें तो उस के पहले और तीसरे चरण के अंत में समान शब्दांत का पालन करना ज़रूरी होगा जो कि गिरिधर जी ने नहीं किया है| <br />५. यदि पाँचवी और छठी पंक्ति को सोरठा की जगह दोहा समझा जाए तो भी इस के दूसरे और चौथे चरण के अंत में गुरु और लघु का पालन अनिवार्य हो जाएगा, इसे भी नहीं किया है गिरिधर जी ने| <br />६. तो मुझे लगता है कि तीसरी- चौथी - पाँचवी और छठी पंक्ति रोला की ही हुई|<br />7. रोला की पन्क्तियों के पहले वाले [फर्स्ट हाफ़] चरणों के अंत में यदि हम गुरु और लघु या तीन लघु जैसे शब्द नहीं लेते तो हम काका हाथारसी जी का समर्थन करेंगे, जिनकी रचनाओं को कुण्डलिया नहीं माना गया|<br />8. कुण्डलिया के शुरू और अंत के शब्द समान होने चाहिए| प्राचीन काल से इस छन्द को यूँ ही लिखा गया है| एक मत और भी चलता रहा है कि नयी कुण्डलिया में इस विधान की [शुरू और अंतिम का शब्द समान] छूट दी जानी चाहिए| खैर ये विद्वानों और उन से भी ज़्यादा जनता जनार्दन का प्रश्न है जिसका हल सिर्फ़ और सिर्फ़ समय के पास है|<br /><br />विशेष:-<br />एक और विशेष बात आप लोगों से साझा करना चाहूँगा कि एक और भी छन्द है जो दिखता तो कुण्डलिया जैसा ही है परंतु अपने विशेष शिल्प के कारण उसे 'अमृत ध्वनि' छन्द कहते हैं| मेरे ब्लॉग पर इन छन्दों को पढ़ सकते हैं आप लोग|<br /><br />ये मेरा मत है, अन्य व्यक्तियों को असहमत होने का पूर्ण अधिकार है|www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-30457514255064432862011-03-08T23:56:51.809+05:302011-03-08T23:56:51.809+05:30सही, कुन्डलिया छंद दोहा व रोला से बना मिश्र-छंद ...सही, कुन्डलिया छंद दोहा व रोला से बना मिश्र-छंद है, मात्रिक ..<br />---हां इसे पहले कुन्डली छंद भी कहा जाता था ...यह भी आवश्यक नहीं कि प्रथम शव्द ही अन्तिम आव्रत्ति में हो पांचवीं पन्क्ति के अन्त्यानुप्रास से भी अन्तिम पन्क्ति की तुकान्त हो सकती है...डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-68655876881299125152011-03-08T22:54:10.880+05:302011-03-08T22:54:10.880+05:30आभार शास्त्री जी।
इस ज्ञान का ब्लॉग जगत को बहुत ज़...आभार शास्त्री जी।<br />इस ज्ञान का ब्लॉग जगत को बहुत ज़रूरत थी।<br />साथ में जो उदाहरण दिए गए है, वह तो कमाल की रचनाएं है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-45637691474017529882011-03-08T22:30:41.038+05:302011-03-08T22:30:41.038+05:30बहुत सुन्दर प्रस्तुतिबहुत सुन्दर प्रस्तुतिराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-42611236841644221512011-03-08T21:52:19.246+05:302011-03-08T21:52:19.246+05:30छंद परम्परा का सम्यक ज्ञान मिला।छंद परम्परा का सम्यक ज्ञान मिला।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-15131075768258270732011-03-08T19:57:43.778+05:302011-03-08T19:57:43.778+05:30आपकी रचनाओं में बहुत आनन्द आता है.आपकी रचनाओं में बहुत आनन्द आता है.भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-42724307511632214712011-03-08T19:55:33.084+05:302011-03-08T19:55:33.084+05:30इस तरह के रोचक और ज्ञानवर्धक बहसें हमारे ज्ञान में...इस तरह के रोचक और ज्ञानवर्धक बहसें हमारे ज्ञान में इजाफ़ा कर जाती हैं. बहुत ही शानदार कोशीश, आभार.<br /><br />रामराम.ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-44185258833279504752011-03-08T18:37:19.299+05:302011-03-08T18:37:19.299+05:30रोचक और ज्ञानवर्धक !रोचक और ज्ञानवर्धक !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-1077387357913525152011-03-08T17:19:14.749+05:302011-03-08T17:19:14.749+05:30जानकारी देने के लिए आभारी हूँ आपकी शास्त्री जी ......जानकारी देने के लिए आभारी हूँ आपकी शास्त्री जी ... छंद बहुत सुंदर हैं .. शुभकामनाएंDr Xitija Singhhttps://www.blogger.com/profile/16354282922659420880noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-2767134577913679572011-03-08T17:18:52.345+05:302011-03-08T17:18:52.345+05:30आनन्ददायी, स्वस्थ एवं ज्ञानवर्धक विमर्श रहा. आपका ...आनन्ददायी, स्वस्थ एवं ज्ञानवर्धक विमर्श रहा. आपका आभार.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-50853632029916528602011-03-08T17:16:22.899+05:302011-03-08T17:16:22.899+05:30हमे तो इसका ज्ञान नही है मगर लयबद्ध लिखे कुण्डलिया...हमे तो इसका ज्ञान नही है मगर लयबद्ध लिखे कुण्डलिया छन्द पढने मे आनन्द बहुत आता है …………आभार्।Darshan Lal Bawejahttps://www.blogger.com/profile/10949400799195504029noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-13523495274802217112011-03-08T17:13:25.500+05:302011-03-08T17:13:25.500+05:30एक बार फिर सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति…………हमे तो इस...एक बार फिर सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति…………हमे तो इसका ज्ञान नही है मगर लयबद्ध लिखे कुण्डलिया छन्द पढने मे आनन्द बहुत आता है …………आभार्।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.com