tag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post5077481022998238964..comments2024-03-28T21:04:40.074+05:30Comments on उच्चारण: काश ये ज़ज्बा हमारे भीतर भी होता?(डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'http://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-14689516529716613502009-02-10T18:41:00.000+05:302009-02-10T18:41:00.000+05:30मनोरंजक प्रसंग था। यह नहीं समझ आ रहा कि टॉमी सही ...मनोरंजक प्रसंग था। यह नहीं समझ आ रहा कि टॉमी सही था, सूअर सही था या पेड पर बैठा लंगूर। चलिए मजाक छोडते हैं सीरियस होते हैं। दिक्कत तो यह है कि लोगों को यह पता ही नहीं कि सही और गलत क्या है? जब सही और गलत के बीच का फर्क करना आएगा तभी तो सार्थक और मानवीय निर्णय लिए जा सकेगें। फिर पुराने मुद्दे पर आते हैं, लगता है लंगूर से कुछ सीख लेनी पडेगी।Atul Sharmahttps://www.blogger.com/profile/09200243881789409637noreply@blogger.com