tag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post7199617186438984066..comments2024-03-28T21:04:40.074+05:30Comments on उच्चारण: "ग़ज़ल-आदमी ही बन गये हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'http://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-13897272648021048222014-03-11T23:18:36.970+05:302014-03-11T23:18:36.970+05:30बस्तियों में आ गये हैं, छोड़कर वन की डगर
आदमी से ...बस्तियों में आ गये हैं, छोड़कर वन की डगर <br />आदमी से बन गये हैं, जंगलों के जानवर<br /><br />सादगी की आदतें, कैसे सलामत अब रहें<br />झूठ के वातावरण में, पा गये हैं सब हुनर...<br />उच्चारण<br /><br />बहुत सशक्त प्रस्तुति मनोहर झरबेरियों की चुभन लिएvirendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-36545093896590123372014-03-11T12:16:13.972+05:302014-03-11T12:16:13.972+05:30सार्थकता लिये सशक्त अभिव्यक्ति सार्थकता लिये सशक्त अभिव्यक्ति सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-14926320403972839792014-03-11T11:53:00.638+05:302014-03-11T11:53:00.638+05:30''आदमी से बन गये हैं, जंगलों के जानवर'...''आदमी से बन गये हैं, जंगलों के जानवर''<br />वाह वाह आदरणीय क्या उम्दा बात कही है। बहुत खूब <br />''बहरूपियों के देश में, चेहरा छिपायें हैं सभी<br />मार डालेंगे दरिन्दे, “रूप” असली जानकर''<br />समाज की असलियत सामने रख दी इस ग़ज़ल में आपने। बहुत बहुत बधाई इस लाज़वाब ग़ज़ल के लिए। <br />सादर <br />Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06050233256281686905noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-9531764998007589282014-03-10T20:06:19.268+05:302014-03-10T20:06:19.268+05:30बहुत सुन्दर पंक्तियाँ, सत्य बताती।बहुत सुन्दर पंक्तियाँ, सत्य बताती।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5484540138728195838.post-11292292489568348152014-03-10T16:50:56.345+05:302014-03-10T16:50:56.345+05:30
चहुँ कोत छल छंद छाए, ए काल बयस ए देस ।
घट घट में...<br />चहुँ कोत छल छंद छाए, ए काल बयस ए देस । <br />घट घट में रावन बसे, भरे राम के भेस ।१३२४। <br /><br />भावार्थ : -- इस समय इस देश की परिस्थितियां ऐसी है, कि चारों दिशाओं में छलकपट ही छाया है । देह देह में रावण का वास है भेष उसने प्रभु श्रीराम का भरा है ॥ Neetu Singhalhttps://www.blogger.com/profile/14843330374912315760noreply@blogger.com