जब कोई श्यामल सी बदली, सपनों में छाया करती है! तब होता है जन्म गीत का, रचना बन जाया करती है!! निर्धारित कुछ समय नही है, कोई अर्चना विनय नही है, जब-जब निद्रा में होता हूँ, तब-तब यह आया करती है! रचना बन जाया करती है!! शोला बनकर आग उगलते, कहाँ-कहाँ से शब्द निकलते, अक्षर-अक्षर मिल करके ही, माला बन जाया करती है! रचना बन जाया करती है!! दीन-दुखी की व्यथा देखकर, धनवानों की कथा देखकर, दर्पण दिखलाने को मेरी, कलम मचल जाया करती है! रचना बन जाया करती है!! भँवरे ने जब राग सुनाया, कोयल ने जब गाना गाया, मधुर स्वरों को सुनकर मेरी, नींद टूट जाया करती है! रचना बन जाया करती है!! वैरी ने हुँकार भरी जब, धनवा ने टंकार करी तब, नोक लेखनी की तब मेरी, भाला बन जाया करती है! रचना बन जाया करती है!! |
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गुरुवार, 29 अप्रैल 2010
“रचना बन जाया करती है!” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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"दीन-दुखी की व्यथा देखकर,
जवाब देंहटाएंधनवानों की कथा देखकर,
कलम मचल जाया करती है!
रचना बन जाया करती है!!"
बहुत खूब .....बहुत खूब !! बेहद उम्दा रचना बनी है !
बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
शोला बनकर आग उगलते,
जवाब देंहटाएंकहाँ-कहाँ से शब्द निकलते,
अक्षर-अक्षर मिल करके ही,
माला बन जाया करती है!
रचना बन जाया करती है!!
उम्दा रचना शास्त्री जी !
वैरी ने हुँकार भरी जब,
जवाब देंहटाएंधनवा ने टंकार करी तब,
नोक लेखनी की तब मेरी,
भाला बन जाया करती है!
रचना बन जाया करती है!!
वाह । क्या खूब ही कहा है आपने। सच है कवि का अपना अलग ही संसार होता है जिसका वो खुद ही नियंता होता है।
बहुत बहुत धन्यवाद
मयंक जी,
जवाब देंहटाएंरचना बहुत अच्छी लगी .
नोक लेखनी की तब मेरी,
भाला बन जाया करती है!
- विजय
वैरी ने हुँकार भरी जब,
जवाब देंहटाएंधनवा ने टंकार करी तब,
नोक लेखनी की तब मेरी,
भाला बन जाया करती है!
रचना बन जाया करती है!!
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति।
नीचे के बंदों में एक पंक्ति की कमी खलती है। शायद टाइप में छूट गया प्रतीत होता है।
दीन-दुखी की व्यथा देखकर,
धनवानों की कथा देखकर,
कलम मचल जाया करती है!
रचना बन जाया करती है!!
भँवरे ने जब राग सुनाया,
कोयल ने जब गाना गाया ,
नींद टूट जाया करती है!
रचना बन जाया करती है!!
वैरी ने हुँकार भरी जब,
धनवा ने टंकार करी तब,
नोक लेखनी की तब मेरी,
भाला बन जाया करती है!
रचना बन जाया करती है!!
nice
जवाब देंहटाएंशोला बनकर आग उगलते,
जवाब देंहटाएंकहाँ-कहाँ से शब्द निकलते,
अक्षर-अक्षर मिल करके ही,
माला बन जाया करती है!
रचना बन जाया करती है!!
बिलकुल सटीक......
वैरी ने हुँकार भरी जब,
धनवा ने टंकार करी तब,
नोक लेखनी की तब मेरी,
भाला बन जाया करती है!
रचना बन जाया करती है!!
कलम का भाला बनना बहुत उत्तम विचार....बधाई
दीन-दुखी की व्यथा देखकर,
जवाब देंहटाएंधनवानों की कथा देखकर,
कलम मचल जाया करती है!
रचना बन जाया करती है!!
वाकई रचना तो ऐसे ही बनती है
दीन-दुखी की व्यथा देखकर,
जवाब देंहटाएंधनवानों की कथा देखकर,
दर्पण दिखलाने को मेरी,
कलम मचल जाया करती है!
रचना बन जाया करती है!!
bilkul sahi baat kah di...........atyant sundar bhaav prekshan.
बहुत अच्छी रचना .... वाह !
जवाब देंहटाएंआज तो आपने राज जाहिर कर दिया कि कैसे आप इतनी बढ़िया रचनायें लिख लेते हैं...
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज कुमार जी!
जवाब देंहटाएंध्यान दिलाने का शुक्रिया!
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टाइप करते हुए जल्दबाजी में निम्नांकित छन्दों में एक-एक लाइन छूट गई थी!
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अब जोड़ दी गईं हैं-
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दीन-दुखी की व्यथा देखकर,
धनवानों की कथा देखकर,
दर्पण दिखलाने को मेरी,
कलम मचल जाया करती है!
रचना बन जाया करती है!!
भँवरे ने जब राग सुनाया,
कोयल ने जब गाना गाया,
मधुर स्वरों को सुनकर मेरी,
नींद टूट जाया करती है!
रचना बन जाया करती है!!
sundar prastutui..
जवाब देंहटाएंवैरी ने हुँकार भरी जब,
जवाब देंहटाएंधनवा ने टंकार करी तब,
नोक लेखनी की तब मेरी,
भाला बन जाया करती है!
रचना बन जाया करती है!!
ye to bahut hi gazab likh diya aapne..bahut hi zabardast hai..
aabhaar..
बहुत सशक्त रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
दर्पण दिखलाने को मेरी,
जवाब देंहटाएंकलम मचल जाया करती है!
Jitni bhi tareef ki jaye, kam hogi.
Congratulations for this wonderful creation.
aapki 'kalam' ke aage nat mastak hun.
Divya
behad sundar rachna bani hai sir..... :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम!
जवाब देंहटाएंagain a touchy composition guru ji....
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachana. badhai ho.
जवाब देंहटाएंएक रचनाकार को हर गुजरने वाले पल, एक नयी अनुभूति दे देते हैं, और अनायास ही रचना बन जाया करती है...
जवाब देंहटाएं