गीत-ग़ज़ल,
दोहा-चौपाई,
सिसक
रहे अमराई में
भाईचारा तोड़ रहा दम, रिश्तों की अँगनाई में
फटा हुआ दामन दर्जी को, सिलना नहीं अभी आया
सारा जीवन निकल गया है, कपड़ों की कतराई में
रत्नाकर में जब भी होता, खारे पानी का मन्थन
मच जाती है उथल-पुथल सी, सागर की गहराई में
केशर की क्यारी को किसने, वीराना कर डाला है
महाबली बलिदान हो गये, बारूदों की खाई में
मन के दर्पण में लोगों ने, चित्र-चरित्र नहीं देखा
'रूप' सलोना देख रहे सब, धुँधली सी परछाई में |
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रविवार, 2 दिसंबर 2018
ग़ज़ल "सागर की गहराई में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अद्भुत अप्रतिम।
जवाब देंहटाएंलाज़वाब ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-12-2018) को "द्वार पर किसानों की गुहार" (चर्चा अंक-3174) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बेहद खूबसूरत भाव और अर्थ के शिखर को छूती हुई ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंदिल का दीया जलाके गया ये कौन मेरी तन्हाई में ,
रोम रोम क्यों पुलक रहा रिश्तों की अंगड़ाई में ?
zanaabveeruda.blogspot.com
veerusa.blogspot.com
veerujan.blogspot.com
गीत-ग़ज़ल, दोहा-चौपाई, सिसक रहे अमराई में
भाईचारा तोड़ रहा दम, रिश्तों की अँगनाई में
फटा हुआ दामन दर्जी को, सिलना नहीं अभी आया
सारा जीवन निकल गया है, कपड़ों की कतराई में
रत्नाकर में जब भी होता, खारे पानी का मन्थन
मच जाती है उथल-पुथल सी, सागर की गहराई में
केशर की क्यारी को किसने, वीराना कर डाला है
महाबली बलिदान हो गये, बारूदों की खाई में
मन के दर्पण में लोगों ने, चित्र-चरित्र नहीं देखा
'रूप' सलोना देख रहे सब, धुँधली सी परछाई में
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब शास्त्री जी, मन के दर्पण में लोगों ने, चित्र-चरित्र नहीं देखा
जवाब देंहटाएं'रूप' सलोना देख रहे सब, धुँधली सी परछाई में...सटीक आज का यथार्थ