जो हैं कोमल-सरल उनको मेरा नमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
पेड़ अभिमान में थे अकड़ कर खड़े,
एक झोंके में वो धम्म से गिर पड़े,
लोच वालो का होता नही है दमन। जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
सख्त चट्टान पल में दरकने लगी,
जल की धारा के संग में लुढ़कने लगी, छोड़ देना पड़ा कंकड़ों को वतन। जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
घास कोमल है लहरा रही शान से,
सबको देती सलामी बड़े मान से,
आँधी तूफान में भी सलामत है तन। जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।। |
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शनिवार, 22 दिसंबर 2018
गीत "मेरा नमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सही कहा
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (16-07-2021) को "चारु चंद्र की चंचल किरणें" (चर्चा अंक- 4127) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
सही कहा सर जी ।
जवाब देंहटाएंसही कहा सर....
जवाब देंहटाएंइतनी सुंदर संदेशयुक्त रचना के लिए आपको नमन 🌹🙏🌹
जवाब देंहटाएंसच कहा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
सादर
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंपेड़ अभिमान में थे अकड़ कर खड़े,
जवाब देंहटाएंएक झोंके में वो धम्म से गिर पड़े,
लोच वालो का होता नही है दमन।
जो घमण्डी हैं उनका ही होता पतन।।
Right 👍👍👍👍👍👍👍
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण पंक्तियां
जवाब देंहटाएं