-- निर्धनता के जो रहे, जीवनभर पर्याय। लमही में पैदा हुए, लेखक धनपत राय।। -- आम आदमी की व्यथा, लिखते थे जो नित्य। प्रेमचन्द ने रच दिया, सरल-तरल साहित्य।। -- जीवित छप्पन वर्ष तक, रहे जगत में मात्र। लेकिन उनके साथ सब, अमर हो गये पात्र।। -- फाकेमस्ती में जिया, जीवन को भरपूर। उपन्यास सम्राट थे, आडम्बर से दूर।। -- उपन्यास 'सेवासदन', 'गबन' और 'गोदान'। हिन्दी-उर्दू अदब पर, किया बहुत अहसान।। -- 'रूठीरानी' को लिखा, लिक्खा 'मिलमजदूर'। प्रेमचन्द मुंशी रहे, सदा मजे से दूर।। -- लेखन में जिसका नहीं, झुका कभी किरदार। उस लमही के लाल को, नमन हजारों बार।। -- |
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सोमवार, 31 जुलाई 2023
दोहे "लेखक धनपत राय-जयन्ती पर विशेष" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ग़ज़ल "शुक्रिया करना नहीं आया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- चमन के फूल सहमें हैं, नजारा देख मौसम का हुए गमगीन भँवरे हैं, नजारा देख मौसम का -- फलक में हैं बहुत बादल, नदारत है मगर बारिश बड़ा हैरान है माली, नजारा देख मौसम का -- करो जैसा-भरो वैसा, यही कानून कुदरत का मियाँ हलकान क्यों होते, नजारा देख मौसम का -- जफा करके मिलेगा क्या, यहाँ अहसान का बदला नजर के सामने अपनी, नजारा देख मौसम का -- मिला जितना उसी का, शुक्रिया करना नहीं आया हकीकत तो हकीकत है, नजारा देख मौसम का -- सितारों से नहीं होती, कभी भी रात रौशन है अँधेरी रात में दिलवर, नजारा देख मौसम का -- अदब की अंजुमन में, आज होती ‘रूप’ की पूजा सुनाते हैं ग़ज़ल जाहिल, नजारा देख मौसम का -- |
रविवार, 30 जुलाई 2023
ग़ज़ल "जमीं की सब दरारों को, मिटाता सिर्फ पानी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- वही नदिया कहाती है, भरी जिसमें रवानी है धरा की सब दरारों को, मिटाता सिर्फ पानी है -- पनपती बुजदिली जिसमें, युवा वो हो नहीं सकता उसी को नौजवां समझो, भरी जिसमें जवानी है -- जहाँ ईमान बिकते हों, वहाँ सब बात बेमानी शिकायत और शिकवों की, वहाँ झूठी कहानी है -- इबादत तो जमाने में, सभी दिन-रात करते हैं अगर दिल से इबादत हो, वही बस पावमानी है -- मुनाफे के लिए ही लोग तो, करते तिजारत हैं सियासत में तिजारत तो, यहाँ पर खानदानी है -- भरी हों खामियाँ कितनी, बने फिर भी भले-चंगे हमारी आज भी फितरत, मगर हिन्दोस्तानी है -- बुलन्दी का का पतन होना, जमाने की रवायत है छिपी है खण्डहरों में भी, इमारत की निशानी है -- फकत मतलब में होती है, इनायत लोकशाही में दिखावे की यहाँ पर रह गयी, अब मेजबानी है -- भरी हैवानियत कितनी, मनुजता के लिबासों में जहाँ में 'रूप' पर होना फिदा, आदत पुरानी है -- |
शनिवार, 29 जुलाई 2023
गीत "दिवस गये अनुराग के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- सूखी धरती-सूखा आँगन, दिवस गये अनुराग के। झूला डालें कहाँ आज हम, पेड़ कट गये
बाग के।। -- गंगा-यमुना और शारदा, जूझ रहीं परिवेशों से, नेताओं का केवल नाता, है भाषण-उपदेशों से, पानी के सब सोत सूख गये, झरने झील तड़ाग के। झूला डालें कहाँ आज हम, पेड़ कट गये
बाग के।। -- लोकगीत दम तोड़ रहे हैं, भौंडे राग-तरानों में, नई पौध आनन्द मनाती, आज निर्रथक गानों में, द्वार बन्द हो गये आज तो, इस कलयुगी दिमाग के। झूला डालें कहाँ आज हम, पेड़ कट गये
बाग के।। -- राखी-तीजो होली के अब, गीत सुहाने नहीं रहे, पर्वत से उतरी सरितायें, गाथा किससे आज कहे, मौन हो गये आज तराने, प्रीत-रीत अनुराग के। झूला डालें कहाँ आज हम, पेड़ कट गये
बाग के।। -- नवयुग की पागल आँधी ने, जीवन में डाला डेरा, ब्रह्मचर्य को आज जगत में, कामुकता ने है घेरा, छोड़ दिये हैं पथ सबने ही, त्याग और बैराग के। झूला डालें कहाँ आज हम, पेड़ कट गये
बाग के।। -- मीनारों में आज भावना, नहीं रही सदभाव की, जिन्ना की सन्तान बोलियाँ, बोल रहीं अलगाव की, टुकड़े करने को आतुर हैं, भारत के भूभाग के। झूला डालें कहाँ आज हम, पेड़ कट गये
बाग के।। -- |
शुक्रवार, 28 जुलाई 2023
दोहे "संरक्षण देता सदा, काँटों का परिवेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जिसको पाने के लिए, दुनिया है बेताब।। -- जिस उपवन में है नहीं, खिलता सुमन गुलाब। वहाँ नहीं आता कभी, रसिकों का सैलाब।। -- खुशबू और गुलाब का, आपस में सम्बन्ध। भीनी-भीनी बाँटता, सबको मधुर सुगन्ध।। -- देता फूल गुलाब का, लोगों को सन्देश। संरक्षण देता सदा, काँटों का परिवेश।। -- सुख-दुख दोनों में रखो, मन को एक समान। हरदम रहनी चाहिए, चेहरे पर मुसकान।। -- जीवन जियो गुलाब सा, बाँटों सबको गन्ध। रिश्तों-नातों में नहीं, चलता है अनुबन्ध।। -- देश-वेश-परिवेश से, करो हमेशा प्यार। कदम-कदम पर दे रही, धरा हमें उपहार।। -- |
गुरुवार, 27 जुलाई 2023
दोहे "मारा-मारी सदन में, होता नित अवरोध" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
राजनीति वारांगना, दौलत का है खेल। मूषक और विडाल का, सम्भव होता मेल।। -- जनसेवक ने खो दिया, गौरव और गुमान। कदम-कदम पर बिक रहा, दीन और ईमान।। -- मारा-मारी सदन में, होता नित अवरोध। जनहित के कानून पर, नेता करें विरोध।। -- धर्म-जाति के नाम पर, जद्दोजहद-जिहाद। इसीलिए तो हो रहे, दंगे और फसाद।। -- घर परिवार-समाज में, स्वस्थ नहीं संवाद। गरिमा को रख ताख में, लोग करें बकबाद।। -- नहीं पुरोहित वो रहे, नहीं रहे यजमान। छल-बल से हैं तौलते, ग्राहक को सामान।। -- वीर और वीरांगना, सदमे में हैं आज। अपमानित करता उन्हें, यह निर्लज्ज समाज।। -- |
बुधवार, 26 जुलाई 2023
गीत "रास्ते मंजिलों से ही मिल जायेंगे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- रंग भी रूप भी छाँव भी धूप भी, देखते-देखते ही तो ढल जायेंगे। देश भी भेष भी और परिवेश भी, वक्त के साथ सारे बदल जायेंगे।। -- ढंग जीने के सबके ही होते अलग, जग में आकर सभी हैं जगाते अलख, प्रीत भी रीत भी, शब्द भी गीत भी, एक न एक दिन तो मचल जायेंगे। वक्त के साथ सारे बदल जायेंगे।। -- आप चाहे भुला दो भले ही हमें, याद रक्खेंगे हम तो सदा ही तुम्हें, तंगदिल मत बनो, संगदिल मत बनो, पत्थरों में से धारे निकल आयेंगे। वक्त के साथ सारे बदल जायेंगे।। -- हर समस्या का होता समाधान है, याद आता दुखों में ही भगवान है, दो कदम तुम बढ़ो, दो कदम हम बढ़ें, रास्ते मंजिलों से ही मिल जायेंगे। वक्त के साथ सारे बदल जायेंगे।। -- अब अँधेरों से बाहर भी निकलो जरा, पथ बुलाता तुम्हें रोशनी से भरा, हार को छोड़ दो, जीत को ओढ़ लो, फूल फिर से बगीचे में खिल जायेंगे। वक्त के साथ सारे बदल जायेंगे।। -- |
मंगलवार, 25 जुलाई 2023
दोहे "तुलसी-पीपल-नीम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- तरल-सरल हों दिवस सब, पियो घोटकर नीम। आयेंगे घर में नहीं, कोई वैद्य-हकीम।। -- जिनके आँगन में रहें, तुलसी-पीपल-नीम। वहाँ वास करते सदा, नानक-राम-रहीम।। -- जब से आँगन के कटे, बरगद-पीपल-नीम। तब से घर में आ गये, कितने रोग असीम।। -- पेड़ लगाकर सींचिए, प्रतिदिन सुबहो-शाम। तरु की शीतल छाँव में, मिलता है आराम।। -- जल-जंगल, पावन पवन, होते प्राणाधार। हरा-भरा परिवेश है, जीवन का आधार।। -- कुदरत के कानून को, भूल गया इंसान। आपा-धापी में पड़ा, अब तो सकल जहान।। -- बदल गया इंसान का, जीने का अंदाज। भौतिकता की होड़ में, चौपट हुआ समाज।। -- |
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