चरण-कमल वो धन्य हैं, समाज को जो दें दिशा, वे चाँद-तारे धन्य हैं, हरें जो कालिमा निशा, प्रसून ये महान हैं, प्रकृति है सँवारती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। जो चल रहें हैं, रात-दिन, वो चेतना के दूत है, समाज जिनसे है टिका, वे राष्ट्र के सपूत है, विकास के ये दीप हैं, मही इन्हें दुलारती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। जो राम का चरित लिखें, वो राम के अनन्य हैं, जो जानकी को शरण दें, वो वाल्मीकि धन्य हैं, ये वन्दनीय हैं सदा, उतारो इनकी आरती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। |
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मंगलवार, 30 नवंबर 2010
"चरण-कमल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

सोमवार, 29 नवंबर 2010
"ग़ज़ल:आशा शैली" (प्रस्तोता:डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
बात दिल की जहाँ-जहाँ रखिए
एक परदा भी दरम्याँ रखिए
घोंसले जब बुने हैं काँटों से
क्यों बचाकर हथेलियाँ रखिए
हौसले अपने आज़माने को
हर कदम साथ आँधियाँ रखिए
मौसमों से नज़र मिलाने को
सर पे कोई न आसमाँ रखिए
हर जगह नाम उनका लिक्खा है
फिक्र है दासतां कहाँ रखिए
माया-ए-ग़म छुपाएँ किस-किस से
कीमती शै को अब कहाँ रखिए
बात दिल की किसी से तो कहिए
पास बेहतर है राज़दाँ रखिए
तब जनम लेगी नग़मगी शैली
दिल के जख्मों पे जब ज़ुबां रखिए
asha.shaili@gmail.com

रविवार, 28 नवंबर 2010
"आपको शत नमन!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

शनिवार, 27 नवंबर 2010
"माता के उपकार बहुत..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
- माता के उपकार बहुत,वो भाषा हमें बताती है!उँगली पकड़ हमारी माता,चलना हमें सिखाती है!!दुनिया में अस्तित्व हमारा,माँ के ही तो कारण है,खुद गीले में सोकर,वो सूखे में हमें सुलाती है!उँगली पकड़ हमारी……..देश-काल चाहे जो भी हो,माँ ममता की मूरत है,धोकर वो मल-मूत्र हमारा,पावन हमें बनाती है!उँगली पकड़ हमारी……..पुत्र कुपुत्र भले हो जायें,होती नही कुमाता माँ,अपने हिस्से की रोटी,बेटों को सदा खिलाती है!उँगली पकड़ हमारी……..ऋण नही कभी चुका सकता,कोई भी जननी माता का,माँ का आदर करो सदा,यह रचना यही सिखाती है!उँगली पकड़ हमारी……
