जय-जय जय कल्याणी माता। जय-जय जय वरदानी माता।। मन है माता मेरा चंचल, माँग रहा हूँ अविचल सम्बल, दे दो ज्ञान भवानी माता। जय-जय जय वरदानी माता।। माँ वीणा की तान सुना दो, शब्दों का आधार बना दो, दया करो विज्ञानी माता। जय-जय जय वरदानी माता।। गुलशन बन जाये वृन्दावन, रहे हमेशा खिलता उपवन, दिवस-रैन मैं तुमको ध्याता। जय-जय जय वरदानी माता।। निराकार-साकार आप हो, भक्तिभाव वन्दना जाप हो, सुत से है माता का नाता। जय-जय जय वरदानी माता।। |
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शनिवार, 27 जुलाई 2024
वन्दना "जय-जय जय वरदानी माता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 26 जुलाई 2024
ग़ज़ल "यौवन उबार लेना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- फूलों को रहने देना, काँटे बुहार लेना। जीवन के रास्तों को, ढंग से निखार लेना। -- सावन की घन-घटाएँ, बरसे बिना न रहतीं, बारिश की मार से तुम, मन को न हार देना। -- इठला रहे हैं अब तो, नाले-नदी-गधेरे, गर हो सके तो इनसे, मस्ती उधार लेना। -- धरती में लहलहाते, बिरुए तुम्हें बुलाते, करके निराई इनका, आँचल सँवार देना। -- अब झूम-झूम भँवरे, गुंजार कर रहे हैं, तुम सादगी से अपने, लम्हें गुज़ार देना। -- चढ़ती हुई नदी का, तो रूप मस्त होता, तुम ज़लज़लों से अपना, यौवन उबार लेना। -- |
गुरुवार, 25 जुलाई 2024
दोहे "करगिल विजय दिवस-हमें दिलाता याद" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जिन वीरों ने युद्ध में, प्राण दिये थे वार। शत-शत नमन उन्हें करे, भारत बारम्बार।। -- सैन्य कैम्प ने द्रास के, रचा अजब इतिहास। करगिल विजय दिवस बना, दुनियाभर में खास।। -- रक्षा अपने देश की, करते वीर जवान। सेना पर अपनी हमें, होता है अभिमान।। -- बैरी की हर चाल को, करते जो नाकाम। सैनिक सीमा पर सहें, बारिश-सरदी-घाम।। -- सैन्य ठिकाने जब हुए, दुश्मन के बरबाद। करगिल की निन्यानबे, हमें दिलाता याद। -- अपना ही लद्दाख है, अपना ही कशमीर। कभी न देंगे पाक को, हम अपनी जागीर।। -- किसी घोषणा पत्र पर, अमल न करता पाक। रहे शुरू से पाक के, मकसद हैं नापाक।। -- अब भी चलता जा रहा, पाकिस्तान कुचाल। धमकाता है शेर को, सीमा पर शृंगाल।। -- |
बुधवार, 24 जुलाई 2024
दोहे "बनता है आधार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लोगों मेरी बात पर, कर लेना कुछ गौर। ठण्डा करके खाइए, भोजन का हर कौर।। -- अफरा-तफरी में नहीं, होते पूरे काम। मनोयोग से कीजिए, अपने काम तमाम।। -- कर्मों से ही भाग्य का, बनता है आधार। कर्तव्यों के बिन नहीं, मिलते हैं अधिकार।। -- देकर पानी-खाद को, फसल करो तैयार। तब विचार से लाभ क्या, जब हो उपसंहार।। -- बैरी की उसको नहीं, अब कोई दरकार। जिसके घर को लूटते, उसके ही सरदार।। -- |
मंगलवार, 23 जुलाई 2024
दोहे "मन में है अतिरेक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- सावन आया झूम के, पड़ती
हैं बौछार। बमभोले की गूँजती, सड़कों
पर जयकार।1। -- चौमासे में आ रहा, भक्तों को आनन्द। काँवड़ के चलते हुए, राजमार्ग सब बन्द।2। -- शिव का गंगा-नीर से, करने
को अभिषेक। बढ़ा हुआ उत्साह का, मन में
है अतिरेक।3। -- पथ पर पैदल चल पड़े, बहनों के
अब वीर। हर-हर के हरद्वार से, लाने
गंगा नीर।4। -- बारिश का मौसम हमें, देता है
सन्देश। अपने प्यारे वतन का, साफ करो
परिवेश।5। -- जो पीता है जहर को, उसका
होता मान। महादेव शिव बन गये, करके विष
का पान।6। -- नर-नारी सब मानते, मन से
जिन्हें सुरेश। विध्न विनाशक के पिता, जय हो
देव महेश।7। - सच्चे मन से जो करे, शिव-शंकर
का ध्यान। शंकर जी देते उसे, खुश होकर
वरदान।8। -- |
सोमवार, 22 जुलाई 2024
दोहे "छिपा रहे पहचान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- छिपी हुई थी अब तलक, जिनकी
भी पहचान। उन सबका सरकार ने, लिया आज
संज्ञान।1। -- योगी
धामी ने किया, बहुत बड़ा ये काम। मालिक को दूकान पर, लिखना
होगा नाम।2। -- हिन्दू देवों से अगर, इतना
ही है प्यार। फिर तो हिन्दू धर्म को, कर
लो अंगीकार।3। -- बमभोले का है यही, उन सबको
आदेश। अपने कारोबार में, रखो वही परिवेश।4। -- करो तामसी भोज का, अपना
धन्धा बन्द। खान-पान में शुद्धता, लाती है आनन्द।5। -- पथ पर पैदल चल पड़े, काँवड़
लाने वीर। हर-हर के हरद्वार में, बहता
पावन नीर।6। -- करना है हर एक को, सब
धर्मों का मान। मुस्लिम होकर किसलिए, छिपा
रहे पहचान।7। -- सच्चे मन से कीजिए, शिव-शंकर
का ध्यान। भोले-शंकर आपको, दे देंगे
वरदान।8। |
रविवार, 21 जुलाई 2024
दोहागीत "गुरू पूर्णिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
-- यज्ञ-हवन करके करो, अपने गुरु का ध्यान। जग में मिलता है
नहीं, बिन सद्गुरु के ज्ञान।। -- भूल गया है आदमी, ऋषियों के सन्देश। अचरज से हैं देखते, ब्रह्मा-विष्णु-महेश। गुरू-शिष्य में हो
सदा, श्रद्धा-प्यार अपार। गुरू पूर्णिमा पर्व
को, करो आज साकार। गुरु की महिमा का
करूँ, कैसे आज बखान जग
में मिलता है नहीं, बिन
सद्गुरु के ज्ञान।(१)। -- गुरु सिखलाते सभ्यता, पाता सिख अमिताभ। अन्तस को दे रौशनी, गुरू ज्योति का
पुंज। सद्गुरु अपने शिष्य
को, देता हरदम ज्ञान। जग में मिलता है
नहीं, बिन सद्गुरु के ज्ञान।(२)। -- तीन गुरू संसार में, मात-पिता-आचार्य। कृपा करें गुरुदेव
जब, तब पूरे हों कार्य। आया है कैसा समय, बदल गयी है रीत। गुरुओं के प्रति अब
नहीं, पहले जैसी प्रीत। श्रद्धा के बिन
शिष्य का, कैसे हो उत्थान। जग में मिलता है
नहीं, बिन सद्गुरु के ज्ञान।(३)। -- दुराचरण की नाक में, कैसे पड़े नकेल। सम्बन्धों की विश्व
में, सूख रही है बेल। मर्यादा दम तोड़ती, बिगड़ गया परिवेश। बदनामी को झेलता, राम-कृष्ण का देश। कदम-कदम पर हो रहा, गुरुओ का अपमान। जग में मिलता है
नहीं, बिन सद्गुरु के ज्ञान।(४)। -- पश्चिम की अश्लीलता, अपनाते हैं लोग। भोगवाद को देखकर, सहम गया है योग। अब तो पूजा-पाठ से, मोह हो गया भंग। सी.ड़ी. में ही कर
रहे, पण्डित जी सत्संग। गिरगिट जैसा रंग अब, बदल रहा इंसान। जग में मिलता है
नहीं, बिन सद्गुरु के ज्ञान।(५)। -- |
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