-- हुआ दूसरे चरण का, जगह-जगह मतदान। सब अपनी ही जीत का, लगा रहे अनुमान।1। -- किसको मिले विषाद अब, मिले किसे आनन्द। क्या होगा परिणाम सब, ई.वी.एम. में बन्द।2। -- आ जायेगा सामने, कुछ दिन में निष्कर्ष। होता है वो ही सफल, जो करता संघर्ष।3। -- चारों तरफ उगी हुई, भारी
खरपतवार। सभी यहाँ बीमार हैं, लेकिन एक अनार।4। -- नौका है मझधार में, कैसे होगी पार। लिए सभी हैं नाव में, भाषण की पतवार।5। -- गंगाजी में आ गयी. नालों की
सब कीच। वैतरणी में आ गये, दुनिया के अब नीच।6। -- सब अपने को देवता, समझ रहे
हैं लोग। राजनीति में कर रहे,
अपना-अपना योग।7। -- |
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शनिवार, 27 अप्रैल 2024
दोहे "भाषण की पतवार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
दोहे "मान न लेना हार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मिलता है फल जीव को, कर्मों के अनुसार।जीवन में बाधाओं से, मान न लेना हार।1।
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ज्ञान बाँटने में कभी, मत करना आलस्य।
उपासना में है प्रमुख, सबसे अधिक उपास्य।2।
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कभी पिछड़ता है नहीं, उसका कोई काम।
जो दिन में करता नहीं, बिस्तर पर आराम।3।
--
काम करो दिन में सदा, रातों को विश्राम।
संघर्षों से जीत लो, जीवन का संग्राम।4।
--
नदियाँ-सूरज-चन्द्रमा, देते ये पैगाम।
नित्य-नियम से कीजिए, अपना सारा काम।5।
--
नहीं मिलेगी हाट में, इन्सानियत-तमीज।
बाँध लीजिए कण्ठ में, कर्मों का ताबीज।6।
--
होते हैं सत्कर्म ही, जग में सच्चे मीत।
वर्तमान में कीजिए, अपने कर्म पुनीत।7।
गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
गुलमोहर गीत "पथिक को छाया मिले" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- हो गया मौसम गरम, सूरज अनल बरसा रहा। गुलमोहर के पादपों का, “रूप” सबको भा रहा।। -- दर्द-औ-ग़म अपना छुपा, हँसते रहो हर हाल में, धैर्य मत खोना कभी, विपरीत काल-कराल में, चहकता कोमल सुमन, सन्देश देता जा रहा। गुलमोहर के पादपों का, “रूप” सबको भा रहा।। -- घूमता है चक्र, दुख के बाद, सुख भी
आयेगा, कुछ दिनों के बाद बादल, नेह भी बरसायेगा, ग्रीष्म ही तरबूज, ककड़ी और खीरे ला रहा। गुलमोहर के पादपों का, “रूप” सबको भा रहा।। -- सर्दियों के बाद तरु, पत्ते पुराने छोड़ता, गर्मियों के वास्ते, नवपल्लवों को ओढ़ता, पथिक को छाया मिले, छप्पर अनोखा छा रहा। गुलमोहर
के पादपों का, “रूप” सबको भा रहा।। -- |
बुधवार, 24 अप्रैल 2024
दोहागीत "सत्याग्रह की आड़ में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- चिड़िया अपने नीड़ में, करती करुण पुकार। सत्याग्रह की आड़ में, राज करें मक्कार।। ।1। आम जरूरत का हुआ, मँहगा सब सामान। ऐसी हालत देख कर, जनता है हैरान।। नेता रहते ठाठ से, मरते हैं निर्दोष। पहन केंचुली हंस की, गिना रहे गुण-दोष।। तेल कान में डाल कर, सोई है सरकार। सत्याग्रह की आड़ में, राज करें मक्कार।। ।2। बातें बहुत लुभावनी, नहीं इरादे नेक। मछुआरे तालाब में, जाल रहे हैं फेंक।। सब्जी और अनाज के, बढ़े हुए हैं भाव। अब तक भी आया नहीं, कीमत में ठहराव।। निर्धन जनता के लिए, महँगाई उपहार। सत्याग्रह की आड़ में, राज करें मक्कार।। ।3। सबको अपनी ही पड़ी, जाये भाड़ में देश। जनता को भड़का रहे, भर साधू का भेष।। जनसेवक करने लगे, जनता का आखेट। घोटाले करके भरें, मोटे अपने पेट।। बात-बात में हो रही, आपस में तकरार। सत्याग्रह की आड़ में, राज करें मक्कार।। ।4। अपने झण्डे के लिए, डण्डे रहे सँभाल। हालत अपने देश की, आज हुई विकराल।। माँगा पानी जब कभी, लपटें आयीं पास। जलते होठों की यहाँ, कौन बुझाये प्यास।। कदम-कदम पर राह में, सुलग रहे अंगार। सत्याग्रह की आड़ में, राज करें मक्कार।। ।5। शाखा पर बैठा हुआ, पाखी गाता गीत। कैसे उसका सुर सधे, बिगड़ गया संगीत।। जनता के ही तन्त्र में, जनता की है मात। धूप “रूप” की ढल गयी, आयी काली रात। नौका लहरों में फँसी, बेबस खेवनहार। सत्याग्रह की आड़ में, राज करें मक्कार।। -- |
मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
दोहे-भूमिदिवस "धरती का सिंगार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- धरा-दिवस पर कीजिए, यही
प्रतिज्ञा आज। भू पर पेड़ लगाइए, जीवित
रहे समाज।१। -- हरितक्रान्ति से ही मिटे, धरती का
सन्ताप। पर्यावरण बचाइए, बचे
रहेंगे आप।२। -- पेड़ लगाकर कीजिए, अपने पर
उपकार। करो हमेशा यत्न से, धरती का
सिंगार।३। -- खाली रहे न कहीं भी, अब
खेतों की मेढ़। सड़क किनारे मित्रवर, लगा
दीजिए पेड़।४। -- प्राणवायु हमको सदा, देते पीपल-नीम। दुनियाभर में हैं यही, सबसे
बड़े हकीम।५। -- बातों से होता नहीं, धरा-दिवस
साकार। यत्न करोगे तो तभी, बेड़ा
होगा पार।६। -- धरती माता तुल्य है, देती
प्यार-अपार। संचित है सबके लिए, धरती
में भण्डार।७। -- |
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