पत्थरों को गीत गाना आ गया है। लक्ष्य था मुश्किल, पहुँच से दूर था, साधना हमको निशाना आ गया है। मन-सुमन वीरान उपवन थे पड़े, पंछियों को चहचहाना आ गया है। हाथ लेकर हाथ में जब चल पड़े, साथ उनको भी निभाना आ गया है। ज़िन्दग़ी के जख़्म सारे भर गये, प्यार करने का जमाना आ गया है। जब चटककर “रूप” कलियों ने निखारा, साज गुलशन को बजाना आ गया है। |
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शनिवार, 31 मार्च 2012
"प्यार करने का जमाना आ गया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
शुक्रवार, 30 मार्च 2012
"कुछ दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
♥ कुछ दोहे ♥ दुनिया में रहते सुखी, राजा, रंक-फकीर। दुःशासन बनकर यहाँ, खींच रहे क्यों चीर।। -- पत्थर रक्खो हाथ में, नहीं टिकेगी ईंट। जनता की इक ठेस से, जाता उतर किरीट।। -- जो आये हैं जायेंगे, ये दुनिया की रीत। दर्प नहीं करना कभी, करो सभी से प्रीत।। -- चार चरण, दो पंक्तियाँ, दोहा जिसका नाम। अमित छाप को छोड़ता, दोहा ललित-ललाम।। -- नेक नियत रक्खो सदा, बने रहेंगे ठाठ। फसल उगाओ खेत में, काटो धान्य विराट।। -- |
गुरुवार, 29 मार्च 2012
"कालजयी रचना कहाँ?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लुप्त हुआ है काव्य का, नभ में सूरज आज। बिनाछन्द रचना रचें, ज्यादातर कविराज।१। जिसमें हो कुछ गेयता, काव्य उसी का नाम। रबड़छंद का काव्य में, बोलो क्या है काम।२। अनुच्छेद में बाँटिए, कैसा भी आलेख। छंदहीन इस काव्य का, रूप लीजिए देख।३। चार लाइनों में मिलें, टिप्पणियाँ चालीस। बिनाछंद के शान्त हों, मन की सारी टीस।४। बिन मर्यादा यश मिले, गति-यति का क्या काम। गद्यगीत को मिल गया, कविता का आयाम।५। अपना माथा पीटता, दोहाकार मयंक। गंगा में मिश्रित हुई, तालाबों की पंक।६। कथा और सत्संग में, कम ही आते लोग। यही सोचकर हृदय का, कम हो जाता रोग।७। गीत-ग़ज़ल में चल पड़ी, फिकरेबाजी आज। कालजयी रचना कहाँ, पाये आज समाज।८। देकर सत्साहित्य को, किया धरा को धन्य। तुलसी, सूर-कबीर से, हुए न कोई अन्य।९। |
बुधवार, 28 मार्च 2012
"मौसम ने ली है अँगड़ाई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मौसम ने ली है अँगड़ाई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। पर्वत का हिम पिघल रहा है, निर्झर बनकर मचल रहा है, जामुन-आम-नीम गदराये, फिर से बगिया है बौराई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। ![]() रजनी में चन्दा दमका है, पूरब में सूरज चमका है, फुदक-फुदककर शाखाओं पर, कोयलिया ने तान सुनाई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। वन-उपवन की शान निराली, चारों ओर विछी हरियाली, हँसते-गाते सुमन चमन में, भँवरों ने गुंजार मचाई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। सरसों का है रूप सलोना, कितना सुन्दर बिछा बिछौना, मधुमक्खी पराग लेने को, खिलते गुंचों पर मँडराई। गेहूँ की बालियाँ सुखाने, पछुआ पश्चिम से है आई।। |
मंगलवार, 27 मार्च 2012
"धरती में सोना उपजाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रविवार, 25 मार्च 2012
‘‘दुर्गा माता’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
मित्रों! गतवर्ष नवदुर्गा के नवरात्रों में तुमको सच्चे मन से ध्याता। दया करो हे दुर्गा माता।। ![]() व्रत-पूजन में दीप-धूप हैं, नवदुर्गा के नवम् रूप हैं, मैं देवी का हूँ उद् गाता। दया करो हे दुर्गा माता।। ![]() प्रथम दिवस पर शैलवासिनी, शैलपुत्री हैं दुख विनाशिनी, सन्तति का माता से नाता। दया करो हे दुर्गा माता।। ![]() देवी तुम हो मंगलकारिणी, निर्मल रूप आपका भाता। दया करो हे दुर्गा माता।। बनी चन्द्रघंटा तीजे दिन, मन्दिर में रहती हो पल-छिन, सुख-वैभव तुमसे है आता। दया करो हे दुर्गा माता।। कूष्माण्डा रूप तुम्हारा, भक्तों को लगता है प्यारा, पूजा से संकट मिट जाता। दया करो हे दुर्गा माता।। पंचम दिन में स्कन्दमाता, मोक्षद्वार खोलो जगमाता, भव-बन्धन को काटो माता। दया करो हे दुर्गा माता।। कात्यायनी बसी जन-जन में, आशा चक्र जगाओ मन में, भजन आपका मैं हूँ गाता। दया करो हे दुर्गा माता।। ![]() कालरात्रि की शक्ति असीमित, ध्यान लगाता तेरा नियमित, तव चरणों में शीश नवाता। दया करो हे दुर्गा माता।। महागौरी का है आराधन, कर देता सबका निर्मल मन, जयकारे को रोज लगाता। दया करो हे दुर्गा माता।। ![]() सिद्धिदात्री हो तुम कल्याणी सबको दो कल्याणी-वाणी। मैं बालक हूँ तुम हो माता। दया करो हे दुर्गा माता।। |