नभ से बादल छँट गये, निर्मल हुए पहाड़। अपने-अपन भवन को, लोग रहे हैं झाड़।। धरती ने धारण किया, हरा-भरा परिधान। खेतों में लहरा रहे, खुश हो करके धान।। बारिश से जो हो गयीं, दीवारें बदरंग। उन पर अब पुतने लगे, फिर से नूतन रंग।। सबके अपने ढंग हैं, सबके अलग रिवाज। श्राद्ध पक्ष में कर रहे, विधि-विधान से काज।। थोड़े दिन के बाद में, आयेंगे नवरात्र। मंचन को आतुर दिखे, रामायण के पात्र।। |
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रविवार, 15 अक्तूबर 2023
दोहे "फिर से नूतन रंग" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंदशहरा के बाद रामलीला की तैयारी जो दीपावली के एकादशी तक चलती थी, याद दिला दी आपने ---बडी उत्सुकता रहती है तब हमें ---दुर्गोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं
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