-1- आया देवउठान फिर, होंगे मंगल काज। हँसी-खुशी से कीजिए, अपने रीति-रिवाज।। -2- करना देवउठान पर, देवों का गुणगान। महक उठेंगे आपके, जीवन के उद्यान।। -3- आदिकाल से चल रहा, त्यौहारों का चक्र। आसमान में ग्रहों की, गति होती है वक्र।। -4- मौसम प्रतिदिन भेजता, हमें गुलाबी पत्र। जो तन को अनुकूल हों, वही पहनना वस्त्र।। -5- शीतलता बढ़ने लगी, रही उष्णता हार। धूप गुनगुनी अब हुई, जीवन का आधार।। -6- चन्दामामा में नहीं, सूरज जैसी धूप। आँखों को अच्छा लगे, सबको उसका रूप।। -7- चन्दा चमका गगन में, छाया धवल प्रकाश। लगे दमकने प्रीत से, धरा और आकाश।। -8- दिन है देवोत्थान का, व्रत-पूजन का खास। भोग लगा कर ईश को, तब खोलो उपवास।। -9- होते देवउठान से, शुरू सभी शुभ काम। दुनिया में सबसे बड़ा, नारायण का नाम।। -10- मंजिल की हो चाह तो, मिल जाती है राह। आज रचाओ हर्ष से, तुलसी जी का ब्याह।। -11- पूरी निष्ठा से करो, शादी और विवाह। बढ़ जाता शुभ कर्म से, जीवन में उत्साह।। -12- चलकर आये द्वार पर, नारायण देवेश।। आयी है एकादशी, लेकर शुभ सन्देश।। -13- खेतों में अब ईख ने, खूब सँवारा रूप। खाने को मिल जायगा, नवमिष्ठान अनूप।। -14- पावन-निर्मल हो गया, गंगा जी का नीर। सुबह-शाम बहने लगा, शीतल-सुखद समीर।। -- |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
बुधवार, 22 नवंबर 2023
दोहे "देवों का उत्थान-आया देवउठान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गुरुवार, 16 नवंबर 2023
दोहे "उगते-ढलते सूर्य की, उपासना का पर्व" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
उगते-ढलते सूर्य की, उपासना का पर्व। अपने-अपने नीड़ से, निकल पड़े नर-नार। -- |
रविवार, 12 नवंबर 2023
गीत "दीपावली-नेह के दीपक" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- दीप खुशियों के जलाओ, आ रही दीपावली। रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।। -- क्या करेगा तम वहाँ, होंगे अगर नन्हें दिए, रात झिल-मिल कर रही नभ में सितारों को लिए, दीन की कुटिया में खाना, खा रही दीपावली। रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।। -- नेह के दीपक सभी को अब जलाना चाहिए, प्यार से उल्लास से, उत्सव मनाना चाहिए, उन्नति का पथ हमें, दिखला रही दीपावली। रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।। -- शायरों-कवियों के मन में उमड़ते उद्गार हैं, बाँटते हैं लोग अपनों को यहाँ उपहार हैं, गीत-ग़ज़लों के तराने, गा रही दीपावली। रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।। -- गजानन के साथ, लक्ष्मी-शारदा की वन्दना, देवताओं के लिए अब, द्वार करना बन्द ना, मन्त्र को उत्कर्ष के, सिखला रही दीपावली। रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।। -- |
गीत "धरा को रौशनी से जगमगायें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- एक दीपक तुम जलाओ, एक दीपक हम जलायें। आओ मिलकर इस धरा को, रौशनी से जगमगायें।। -- आज दूषित सभ्यता की, चल रहीं हैं आँधियाँ, आग में अलगाव की तो, जल रही हैं वादियाँ, नफरतों को दूर करके, एकता की धुन बजायें। आओ मिलकर इस धरा को, रौशनी से जगमगायें।। वतन में गन्दी सियासत, सेंकती हैं रोटियाँ, स्वप्न ज़न्नत के दिखाकर, नोचती हैं बोटियाँ, सूखते परिवेश में हम, नेह की फसलें उगायें। आओ मिलकर इस धरा को, रौशनी से जगमगायें।। -- अन्न-जल खा जिस चमन में, हम पले हैं, थामकर अँगुली वतन की हम
चले हैं, आओ श्रद्धा-भाव से, उस
मातृभू को सिर नवायें। आओ मिलकर इस धरा को, रौशनी से जगमगायें।। -- जगत में अस्तित्व है
जिससे हमारा, सभी का होता जहाँ पर है
गुजारा, शौर्य के, अभिमान के, हम गीत आओ
गुनगुनायें। आओ मिलकर इस धरा को, रौशनी से जगमगायें।। |
रविवार, 5 नवंबर 2023
दोहे "अहोई-अष्टमी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- सारे जग से भिन्न है, अपना भारत देश। रहता बारह मास ही, पर्वों का परिवेश।। पर्व अहोई-अष्टमी, दिन है कितना खास। जिसमें पुत्रों के लिए, होते हैं उपवास।। दुनिया में दम तोड़ता, मानवता का वेद। बेटा-बेटी में जहाँ, दुनिया करती भेद।। पुरुषप्रधान समाज में, नारी का अपकर्ष। अबला नारी का भला, कैसे हो उत्कर्ष।। बेटा-बेटी के लिए, हों समता के भाव। मिल-जुलकर मझधार से, पार लगाओ नाव।। एक पर्व ऐसा रचो, जो हो पुत्री पर्व। व्रत-पूजन के साथ में, करो स्वयं पर गर्व।। बेटा-बेटी समझ लो, कुल के दीपक आज। बदलो पुरुष प्रधान का, अब तो यहाँ रिवाज।। |
गुरुवार, 2 नवंबर 2023
दोहे "झिलमिल करते दीप" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मन के भीतर है भरा, दुनियाभर का ज्ञान।। -- माटी का दीपक भले, कितना रहे कुरूप। जलकर बाती नेह की, फैला देती धूप।। -- दीवाली पर द्वार को, कभी न करना बन्द। झिलमिल करते दीप ही, देते हैं आनन्द।। -- सदा स्वदेशी का करो, जीवन में उपयोग। मत चीनी सामान का, करो कभी उपभोग।। -- सुलभ सभी है देश में, आवश्यक सामान। फिर क्यों लोग विदेश की, चला रहे दूकान।। -- नहीं किसी भी क्षेत्र में, पीछे अपना देश। फिर क्यों टुकड़े बीनने, जाते युवक विदेश।। -- गाते गान विदेश का, खा स्वदेश का माल। भारत-भू को कलंकित, करते आज दलाल।। -- |
बुधवार, 1 नवंबर 2023
करवाचौथ विशेष "चाँद-करवा का पूजन तुम्हारे लिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
करवाचौथ विशेष -- कर रही हूँ प्रभू से यही प्रार्थना। ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। चन्द्रमा की कला की तरह तुम बढ़ो, उन्नति की सदा सीढ़ियाँ तुम चढ़ो, आपकी सहचरी की यही कामना। ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। -- आभा-शोभा तुम्हारी दमकती रहे, मेरे माथे पे बिन्दिया चमकती रहे, मुझपे रखना पिया प्यार की भावना। ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। -- तीर्थ और व्रत सभी हैं तुम्हारे लिए, चाँद-करवा का पूजन तुम्हारे लिए, मेरे प्रियतम तुम्ही मेरी आराधना। ज़िन्दगी भर सलामत रहो साजना।। -- |
गीत "आ भी आओ चन्द्रमा आकाश में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-- थक गईं नजरें तुम्हारे दर्शनों की आस में। आ भी आओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में।। -- चमकते लाखों सितारें किन्तु तुम जैसे कहाँ, साँवरे के बिन कहाँ अटखेलियाँ और मस्तियाँ, गोपियाँ तो लुट गईं है कृष्ण के विश्वास में। आ भी आओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में।। -- आ गया मौसम गुलाबी, महकता सारा चमन, छेड़ती हैं साज लहरें, चहकता है मन-सुमन, पुष्प, कलिकाएँ, लताएँ मग्न हैं परिहास में। आ भी आओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में।। -- आज करवाचौथ पर मन में हजारों चाह हैं, सब सुहागिन तक रही केवल तुम्हारी राह हैं, चाहती हैं सजनियाँ साजन बसे हों पास में। आ भी आओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में।। -- |
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...